Book Title: Lokprakash Part_4
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 63
________________ रप्यन्ताभावमात्रेण विवक्षितमिति भगवती श० २५ उ०५। शिष्टोपदिष्टार्थवचोगरिष्ठः, क्षणाद्यनेकात्मविधा-1 वरिष्टः। स्वहेतुतोजीवितसर्वलोको, दिष्ट्या समाप्तः किल दिष्टलोकः॥१७॥ विश्वाश्चर्यदकीर्तिकीर्तिविजयश्रीवाचकेन्द्रान्तिषद्राजश्रीतनयोऽतनिष्ट विनयः श्रीतेजपालात्मजः। काव्यं यत्किल तत्र निश्चितजगत्तत्त्वप्रदीपोपमे, पञ्चत्रिंश इहैव पूर्तिमगमत् सर्गो निसर्गाज्वलः॥२१८ ॥ ३५ ॥ इति महोपाध्यायश्रीविनयविजयगणिविरचिते श्रीलोकप्रकाशे पंचत्रिंशत्तमः सर्गः समाप्तः तत्समाप्तौ समाप्तोऽयं दिष्ट(काल)लोक: in Educat i onal For Private & Personel Use Only XMow.jainelibrary.org

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