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मुझे याद है कि एक किसान ने अपने पड़ौसी की खूब निन्दा की, अनर्गल बातें उसके बारे में बोली। बोलने के बाद उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया, गलत कर दिया। वह पादरी के पास गया और बोला 'मैंने अपने पड़ौसी की निन्दा में बहुत उल्टी-सीधी बातें कर दी हैं, अब उन बातों को कैसे वापस लूँ?' पादरी ने वहाँ बिखरे हुए पक्षियों के पंख इकट्ठा करके दिये और कहा शहर के चौराहे पर डालकर आ जाओ। जब वापस आ गया तो पादरी ने कहा, 'अब जाओ और इन पंखों को वापस इकट्ठा करके ले आओ।' किसान गया, लेकिन चौराहे पर एक भी पंख नहीं मिला। सब हवा में तितर-बितर हो चुके थे। किसान खाली हाथ पादरी के पास लौट आया। पादरी ने कहा, 'यही जीवन का विज्ञान है कि जैसे पंखों को इकट्ठा करना मुश्किल है वैसे ही बोली हुई वाणी को लौटाना हमारे हाथ में नहीं है। जैसे कमान से निकला हुआ तीर वापस नहीं लौटता वैसे ही मुंह से निकले हुए शब्द कभी वापस नहीं लौटाये जा सकते ।'
सत्य बोलें, पर मधुर बोलें। ऐसे सत्य को भी कम बोलने का प्रयास करें जो दूसरे की भावना को ठेस पहुँचाए। कभी दूसरों की कमज़ोरी का मज़ाक न उड़ायें। व्यंग्य भरी भाषा से बचें। आप नहीं जानते आपका छोटा-सा व्यंग्य सामने वाले के लिए बाण का काम कर सकता है और वह जीवन भर के लिए आपसे गाँठ बाँध सकता है। हर सास इस बात का ध्यान रखे कि अपनी बह से कभी व्यंग्य में न बोलें। आप बहू के पीहर के लिए छोटी-सी टिप्पणी करते हैं पर उसके लिए वह बाण का काम कर सकता है। अगर आपकी बहू ग़रीब घर से आयी हो तो भी उसे बातों में उसके पीहर की गरीबी याद न दिलायें। महाभारत का कारण केवल जुआ या चीर-हरण ही नहीं था, अपितु द्रौपदी की वह व्यंग्यात्मक टिप्पणी थी जिससे दुर्योधन के मन में द्रौपदी के प्रति विरोध की गाँठ बँधी। ज़मीन पर चलते समय पानी का भ्रम
और पानी में उतरते समय ज़मीन का भ्रम, दुर्योधन चूक खा जाता है और द्रौपदी बोल पड़ती है अंधे का बेटा अंधा होता है। दुर्योधन को यह बात
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