Book Title: Kya Swad Hai Zindagi ka
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 142
________________ को पाने की अपेक्षा रखेगा। इसलिए कोशिश करें कि सहज रूप में बच्चे के जीवन का विकास हो । बच्चे को प्रेरणा का पाठ पढ़ाइये, उसे आंशिक रूप से स्पर्धा का पाठ भी पढ़ाईये, लेकिन ऐसा न हो कि पढ़ाते-पढ़ाते बच्चे को ईर्ष्या का पाठ पढ़ाना शुरू कर दें। आप प्रेरणा का पाठ पढ़ाइये कि वह औरों के जीवन को देखकर अपने जीवन के विकास की संभावनाओं की तलाश करे। आप बच्चे का सर्वतोभावेन विकास चाहते हैं तो उससे अधिक अपेक्षाएं न रखें। उसके जीवन का सहज विकास होने दें। जब उसके जीवन का सहज विकास होगा तो वह तनावमुक्त होगा और जब आप उसे असहज कर देंगे तो उसे अपना जीवन तनावपूर्ण लगने लगेगा। ध्यान रखें, अपने बुढ़ापे के लिए भी उससे अधिक अपेक्षाएं न रखें कि मैंने इसके लिए क्या-क्या सपने देखे थे, इसके लिए क्या-क्या सोचा था। इसके लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया और आज क्या दिन देखने पड़ रहे हैं। आपके मन में यह जो जंजाल चलेगा, वह आपका जीवन नारकीय बना देगा। संतानें आपकी बात मान लें तो अच्छी बात है, स्वीकार कर लें तो ठीक है और अस्वीकार कर दें तो खास बात नहीं है। टोकें,रोके,रखें निग़ाह ___ एक बात और कि आप अपने बच्चों के चरित्र के प्रति सजग रहें । केवल पढ़ाई के नाम पर उनका बचपन 'कॉन्वेंट' स्कूलों के नाम न कर, अपना समय भी उन्हें दे। यह देखने, परखने की भी कोशिश करें कि आपका बच्चा कहाँ जा रहा है, किन लोगों के बीच रह रहा है। अगर वह थोड़ी-सी भी गलत राह पर जा रहा है तो आप नज़रअंदाज करने की बजाय उसे हिदायत दें, उस पर अंकुश लगाएँ, उसे संकेत दें। और तो और उसे टोकने की हिम्मत रखें। अगर वह गलत दोस्त के साथ जा रहा है तो यह न सोचें कि इसे मैं अलग से एकांत में कहूँ कि बल्कि उस दोस्त के सामने उसे टोकने की हिम्मत रखें। बिगडैल बच्चे के माँ-बाप कहलाने के बजाय आप बिना बच्चे के रहें तो ज्यादा अच्छा है। आप कम दुःखी होंगे। गांधारी अगर बिना संतान की होती तो शायद उतनी दुःखी न होती जितनी दुःखी वह दुर्योधन और दुःशासन जैसे सौ पुत्रों को 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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