Book Title: Kya Swad Hai Zindagi ka
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 122
________________ बाहर धर्म, तो भीतर अधर्म क्यों? आपने दो मुंहे सांप के बारे में सुना होगा। दो मुंहे इंसान सांपों से ज्यादा ज़हरीले होते हैं। सांप का काटा तो शायद बच भी जाए, पर दो मुंहे इंसान के काटे को तो भगवान भी नहीं बचा सकते। हम देखें कि कहीं हमारी ज़िंदगी दोहरी तो नहीं होती जा रही है। हम बाहर से धार्मिक हैं, लेकिन भीतर से अनैतिक हैं। बाहर से तो प्रसन्न नज़र आ रहे हैं, लेकिन भीतर से कुटिल हैं । हम बाहर से तो सामाजिक एकता की बात कर रहे हैं, लेकिन भीतर से समाज में घात कर रहे हैं। बाहर से तो हम अहिंसा और शांति की बातें करते हैं, लेकिन भीतर से अशांति और क्रूरता को जन्म दे रहे हो । ईमानदारी से अपने मन को टटोलें कि बाहर से अच्छे नज़र आने वाले हम लोग भीतर से कैसे हैं? छत्त हम लोग किसी के घर ठहरे हुए थे। दो मंज़िल का मकान था, थी, बरामदा भी था। बरामदे में उस व्यक्ति ने विभिन्न प्रकार के फूलों के गमले लगा रखे थे। सांझ को जब मैं बरामदे में घूम रहा था तो पाया कि फूल भी नकली थे और गमले भी कृत्रिम थे । उन्होंने कई तरह के नकली फूल सजा रखे थे। सुबह जब मकान मालिक उठा तो उसने उन नकली फूलों पर पानी भी छिड़का । मैंने सोचा, आखिर इन प्लास्टिक के फूलों पर पानी छिड़कने का क्या औचित्य? आखिर मैंने पूछ ही लिया कि इन प्लास्टिक के फूलों पर पानी क्यों छिड़क रहे हो? उसने जवाब दिया ताकि, पड़ौसियों को लगता रहे कि असली फूल हैं। आपके चेहरे पर यह जो मुस्कान है वह प्लास्टिक के फूलों पर छिड़का गया पानी है बस ! भीतर की मुस्कान, भीतर की शांति, भीतर का आनंद मरता जा रहा है । हमारे अन्तर्मन का प्रेम मृतप्रायः होता जा रहा है। जीवन उस साईकिल की तरह हो गया है जो चल तो रही है पर वहीं की वहीं खड़ी है । व्यायाम करने के लिए लोग साइकिल चला तो रहे हैं, पर साइकिल वहीं की वहीं है। कहीं हमारी स्थिति भी ऐसी तो नहीं है? Jain Education International 121 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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