Book Title: Kya Swad Hai Zindagi ka
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 121
________________ पहले, अपने पास खड़े लोगों से कहा, 'मेरे मरने के बाद लोगों को बताना कि सिकंदर जिसने सारी दुनिया को जीता, पर अपनी ज़िदंगी से हार गया।' जीवन नहीं है बोझ मेरी बातें भी इसी से संबंधित हैं। मैं आपको यही बताना चाहता हूँ कि कहीं आप अंतिम समय में जिंदगी से न हार जाएँ, आपको यह न लगे कि सब कुछ पाकर भी आपने I जीवन को खो दिया। पानी व्यर्थ बहता हो तो खटकता है, बल्ब फिजूल जल रहा हो तो खटकता है, कुछ भी । अनावश्यक हो रहा हो तो खटकता है - यह अच्छी बात है पर व्यर्थ जाती हुई जिंदगी हमें क्यों नहीं खटकती। मनुष्य की यह बेशकीमती जिंदगी जिसमें वह अपनी महानताओं को उपलब्ध कर सकता है, इस जिंदगी के प्रति सचेत क्यों नहीं रहता। आप यह सावधानी तो रखते हैं कि कहीं धंधे में घाटा न लग जाए, बेटा बिगड़ न जाए, पत्नी किसी और के साथ न हो जाए - इनमें बहुत सावधानी रखी जाती है लेकिन अपनी जिंदगी के प्रति क्या इतनी ही सावधानी रखते हैं? अनावश्यक कार्यों में, दोस्तों के साथ निरर्थक बातों में, ताश-जुएँ में, अपना समय बर्बाद करते रहे हैं। और तो और, पूछने पर कि भई क्या कर रहे हो तो उत्तर मिलता है टाइम-पास कर रहे हैं। क्या जिंदगी केवल 'पास' करने के लिए है? क्या हमारी ज़िदंगी इतनी भारभूत बन गई है कि हमें जिंदगी को पास करना पड़ रहा है। जीवन गतिशील हो, कृत्रिम नहीं वास्तविक हो। अपनी जिंदगी में देखें कि हमारी मुस्कान कृत्रिम है या वास्तविक है ? जीवन जो इतनी सुखसुविधाओं से भरा है यह कृत्रिम है या इसमें सहज आनंद भी है? व्यक्ति के जीवन का सुख-शांति-आनंद सब कुछ कृत्रिम हो गया है। भीतर कुटिलता से भरा हुआ आदमी बाहर से कोमल नज़र आ रहा है। बाहर से मुस्कुराने वाला भीतर से कैंची चलाने की कोशिश कर रहा है। बाहर से अपनत्व दर्शाने वाला भीतर से गिराने और काटने की कोशिश कर रहा है। मेरे देखे, व्यक्ति की जिंदगी इतनी दोहरी हो गई है कि बाहर का चेहरा कुछ और है, भीतर का चेहरा कुछ और। 120 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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