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करीब ६०० फीट ऊँची है और यही कारण है कि वहां से निकली गंगा को पूर्व की ओर का रास्ता नीची ढाल का मिला और सिन्धु को पश्चिम की ओग का रास्ता नोची ढाल का मिला । अतः उन्हें अन्त में जहाँ समुद्र मिला वहाँ उसमें विलीन हो गई ।
किन्तु यह समाधान भी अपूर्ण है । क्योंकि विज्ञान वादियों ने पृथ्वी को गोल होने के साथ ही भ्रमण करतों हुई भा माना है और जो गोल वस्तु घूमती है तो उसमें सदा एक रुपना न रहकर कभी ऊँचाई और कभी नीचाई का आते जाते रहना स्वाभाविक है अतः केवल ढलते पथ का वहाना लेकर जल की समतलता को प्रमाणित करना कयमपि सम्भव नहीं
है
यदि पृथ्वी को गोल ही माना जाय तो एक प्रश्न और सहज उठता है कि विश्व में बड़ो-बड़ो नहरों का जो निर्माण हुआ है उसमें गोलाकार सेमाने वालो कठिनाई को दूर करने के लिये तदनुसार गहराई क्यों नहीं दी गई ?
उदाहरणार्थ - चान में बनी हुई सब से बड़ी नहर की लम्बाई ७०० मील जितनी और उसको रचना करते समय किसा भो प्रकार की गहराई नहीं दो गई है फिर भी वह आज यथोचित रूप में प्रवहमान है ।
तक
इस प्रकार स्वेज के उत्तर की और १०० मील लम्बी नहर बनाने की योजन की ।
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