Book Title: Kya Pruthvi ka Aakar Gol Hai
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jambudwip Nirman Yojna
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી યશોવિજયજી 5 જૈન ગ્રંથમાળા. साहेब, लायनगर. SeChese-2020 : PBOL 300४८४१ SARAJNARENA CINIATI VYAY मेरु पर्वत क्या पृथ्वी का आकार गोल है ? 3 3 विज्ञान की कसौटो पर आवश्यक विश्लेषण Shree Sudharmaswami Svanbhandan Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या पृथ्वी का आकार गोल है ? विज्ञान की कसौटी पर आवश्यक विश्लेषण यदस्ति सत्यं किल भासमानं, तदेव नित्यं हृदि नश्चकास्तु । -: निबन्धक :पूज्य उपाध्याय श्रीधर्मसागरजी म. चरणोपीसक मुनि श्रीअभयसागरजी महाराज -: सम्पादक :पं० रुद्रदेव त्रिपाठी साहित्यसांख्ययोगाचार्य एम० ए० (संस्कृत-हिन्दी), बी० एड, साहित्यरत्नादि, संचालक-साहित्य-संवर्धन-संस्थान, मन्दसौर म०प्र० -:प्रकाशक : पूनमचन्द पानाचन्द शाह कार्यवाहक-जम्बूद्वीप-निर्माण-योजना, कपड़वंज (गुजरात) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम संस्करण वीर निर्वाण संवत् २४६३ विक्रम संवत् २०२४ मूल्य-एक रुपया विशेष सूचना ___ यह विषय समीक्षात्मक दृष्टि से विचारने । योग्य है, अतः किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह अथवा मान्यता के आवेश में न आते हुए तटस्थ दृष्टि से । विमर्श करने के लिये प्रत्येक विद्वान् को भावभीना आमन्त्रण है। मुद्रकपं० पुरुषोत्तमदास कटारे, हरीहर इलेक्ट्रिक मशीन प्रेस, कंसखार बाजार, मथुरा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय वर्तमान समय में विज्ञान द्वारा प्रदत्त अनेकानेक भौतिक सुविधाओं की चकाचौंध से सर्वसाधारण जन-जीवन आमूल-चूल प्रभावित प्रतीत होता है । जागतिक सुखों की आँधी में उत्तरोत्तर प्रतिस्पर्धा करता हुआ आज का मानव धीरे-धीरे हमारे ऋषि-प्रणीत उत्तमोत्तम सारभूत धर्मग्रन्थों के प्रति भी शिथिल श्रद्धा वाला बनता जा रहा है । ___ भारतीय प्रास्तिक जगत् को अपने धर्मशास्त्रों में वर्णित भूगोल-सम्बन्धी विचारों के प्रति निष्ठा स्थिर रखने के लिये ऐसे अवसर पर एक महत्त्वपूर्ण उद्बोधन की पूर्ण पावश्यकता है, अन्यथा यह ह्रसनशील प्रवृत्ति क्रमशः निम्नस्तर पर पहुँचती ही जायगी तथा ईश्वर न करे कि वह दिन भी देखना पड़े कि जब स्वर्ग, नरक, पुण्य-पाप, आत्मा-परमात्मा आदि सभी निरर्थक कल्पनामात्र कहने लग जाय ! इस विषम परिस्थिति को ध्यान में रखकर गत सोलह वर्षों से परमपूज्य उपाध्याय श्रीधर्मसागरजी महाराज के चरणोपासक पूज्य गणिवर्य श्रीअभयसागरजी महाराज ने स्वदेश एवं विदेश के भौगोलिक-विज्ञान का अध्ययन-अनुशीलन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ww www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रारम्भ किया और सतत परिशीलन के परिणाम स्वरूप अनेक ऐसे तथ्य ढूँढ़ निकाले कि जिससे 'पृथ्वी के आकार, भ्रमण, गुरुत्वाकर्षण, चन्द्र की परप्रकाशिता' जैसे विषयों पर अधुिनिक वैज्ञानिकों की मान्यताओं के मूल में स्थित 'भ्रान्तधारणाएँ, कल्पनाएँ, तथा अपूर्णताएँ' प्रत्यक्ष प्रस्फुटित होने लगीं। ऐसे सारपूर्ण विचारों को भूगोल वैत्तानों के समक्ष उपस्थित करने और एतद्विषयक मनीषियों के उपादेय विचारों को जानने के लिये अनेक मनीषियों ने मुनिवर्य से प्रार्थनाएँ की, और उन्होंने अपनी साधना में निरन्तर संलग्न रहते हुए भी लोकोपकार की दृष्टि से अपने विचारों को लिपिबद्ध करने की कृपा की। यह विचार परम्परा विषय की गम्भीरता एवं विशालता के कारण अनेक रूपों में विभक्त हो, यह स्वाभाविक ही है। मैंने मनिश्री के निकट बैठकर उनके विचारों, तों और उत्तरप्रत्युत्तरों को समझा है तथा तदनुसार ही उन्हें संकलित कर प्रस्तुत पुस्तिका के रूप में उपस्र्थि विश्वास है विज्ञ पाठक इसका सीधान-मस्तिष्क से परिशीलन करेंगे तथा इस विषय पर अपने विचारों से हमें अवगत कराने की अनुकम्पा करेंगे। L -हद्रदेव त्रिपाठी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री परमात्मने नमः॥ क्या पृथ्वी का साकार गोल है? वैज्ञानिक धारणा मज सभी वैज्ञानिक एक मत होकर एक आवाज में यह उद्घोष करते हैं कि “पृथ्वी नारंगी के समान गोल है।' यद्यपि इस मान्यता के समक्ष अनेक भूगोल विशारदों एवं तथ्यान्वेषियों के विचारों में अकाट्य तर्क संगत प्रमाणों के आधार पर मतभेद है तथा कोई पृथ्वी को सेव फल के समान गोल मानते हैं तो अन्य किसी अन्य वस्तु के आकार में गोल होने की सम्भावना करते हैं। तथापि इस बात में तो सभी एक मत हैं कि 'पृथ्वी गोल हैं।" __ इस माम्यसा के पीछे · वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत कतिपय तर्क हैं, कुछ उदाहरण हैं और कुछ प्रमाण हैं जिनके आधार पर वे अपनी धारणाओं को उत्तरोत्तर बढ़ाने और प्रमाणित करने का प्रयास करते रहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) किन्तु वस्तुतः उनके द्वारा उपस्थापित तर्क, उदाहरण एवं प्रमाणों पर विचार किया जाय तो वे अपर्याप्त, त्रुटिपूर्ण और अपने आप में भ्रमपूरण हैं । हम आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा दिये जाने वाले उन तर्कादि पर क्रमिक विश्लेषण यहाँ प्रस्तुत कर उनके औचित्य पर संक्षेप में विचार करंगे जिसस हमारी भ्रान्तियाँ दूर हा तथा अवचान विज्ञान - सम्बन्धा मान्यताओं के बल पर हमारे प्राचान आागमा और वेदादि-शास्त्रों में वर्णित भूगोल- विज्ञान के प्रति बढ़ती हुई अनास्था को सदा के लिये हृदय से विदा करदें । इसके लिये सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि पृथ्वा को गोल मानने से कितना और कोन २ सा आपत्तियाँ उठतो है जिनका कि निराकरण तर्कशुद्ध युक्तियां के द्वारा हा नहीं पाता । पहले इसी दृष्टि कोण से सोचें- यदि पृथ्वी गोल है ता उस पर स्थित अगाध जल - राशि समतल नहीं हो सकता, क्योंकि किसी भी गोलाकार वस्तु पर पानो समस्थल रूप में नहीं ठहर सकता जिसका प्रत्यक्ष कारण यह है कि परिधि में ऊँचाईनीचाई रहतो है । इसका उत्तर यदि यह दिया जाय कि -- "पानी गोलाकार पर भी स्थिर रह सकता है क्योंकि केन्द्र सब ओर से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समान लम्बी रेखाओं द्वारा बनाया गया है उसमें ऊँचा नीचापन नहीं है, इस लिये गोल पृथ्वी पर भी पानो समतल स्थित है." तो यह उपयुक्त नहीं। क्योंकि समतल पानी में कहीं गढढे भी नहीं होने चाहिए जब कि आज के वैज्ञानिकों को मान्यतानुसार यत्र-तत्र पानी में गड्ढों की स्थिति स्वीकृत है। उदाहरणार्थ-दक्षिणी उत्तरी पोलों में पृथ्वी का व्यास २६ मील कम अर्थात् ७९०० मील माना गया है तो १३ मील एक ओर को नोचाई में गड्ढा हुमा तब उसमें पानी भरा रहना चाहिये। और यदि भरा हुआ माना जाय तो पृथ्वो का व्यास ७९२६ मोल का कहना चाहिए और पोलों में बर्फ अथवा पृथ्वो मानी जाए तो पृथ्वो का व्यास ७६२६ मोल से अधिक मानना चाहिए क्योंकि बर्फ अथवा पृथ्वी पानो से ऊपर हो रहते हैं। और ऐसा मानने पर पृथ्वी का दक्षिणोत्तर व्यास ७६०० मोल का मानना असत्य सिद्ध होता अब यह कहा जाय कि-जैसे पानी का भरा हुमा लोटा तेजी से ऊपर नीचे घुमाया जाय तो उसमें गढ्ढा पड़ जाता है वैसे ही पृथ्वी घूमती है इस लिये दोनों ओर गड्ढे पड़ने से यह चपटी हो गई है, तब इसका जो व्यास माना गया है उसमें कोई विरोध नहीं आएगा। किन्तु यह कथन भो प्रमाण संगत नहीं प्रतीत होता । क्योंकि लोटे का घुमाव तो ऊर्जा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ ) घोरूप माना गया है जब कि पृथ्वी का ऐसा घुमाव विज्ञानसम्मत नहीं है और यदि वैसा घुमाव पृथ्वी का मान भी लिया जाय तो ऊर्ध्वभागस्थित तथा अधोभागस्थित समुद्रों में गड्ढे पड़ने चाहिये किन्तु वैसा कहीं उल्लेख नहीं किया गया है । "" समुद्र के पानी में नोचे कहीं गड्डे नहीं हैं, और उत्तरी प्रौर एवं दक्षिण पोलों मे जो गड्ढे माने जाते हैं वे असम्भव हैं । यदि " दाएँ और बाएँ घूमने से पोलों में गड्ढे पड़ गये हैं । ऐसा कहा जाय तो यह भी तर्क संगत नहीं है क्योंकि पोलों में समुद्र का पानी नहीं माना गया है । अतः पृथ्वी के घूमने से दोनों ओर गड्ढे पड़ गये हैं और वह गड्ढों के कारण ही चपटी हो गई है तथा चपटी होने से पानी समतलरूप में स्थित है' यह उत्तर सर्वथा निराधार हो जाता है । यदि यह कहा जाय कि वहाँ तो बिना पानी के ही गड्ढा बना हुआ है तो यह भी असम्भव है । क्योंकि 'पत्थर, मिट्टी अथवा काठ का गोला जो पृथ्वी रूप हो, वह किसी भी प्रकार से क्यों न घूमता हो उसमें गड्ढा नही पड़ सकता, यह प्रत्यक्ष देखा जाता है । अतः पृथ्वी को गोल मानना मिथ्याभ्रान्ति मात्र है । तीसरा प्रश्न यह उठता है कि - यदि पृथ्वी गोल आकार वाली हो तो गंगा और सिन्धु जैसी नदियों के बहाब में अन्तर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होना चाहिए। जैसे-कुरुक्षेत्र से कलकत्ता के समुद्र की सतह ६०० फीट नीची मानी गई है जिससे पूर्ववाहिनी गंगा नदी का बहाव १ मील में १ फोट के करीब सम्भव है, परन्तु पृथ्वी में गोलाकार मानने से कुरुक्षेत्र से कलकत्ता की भूमि ५२७००० फीट नीची होती है जो गणित द्वारा सिद्ध है ।* तब इतना नीचो पृथ्वी ह'ने से गंगा का बहाव अथवा पश्चिम वाहिनी सिन्धु नदी का वहाव कितना वेगपूर्ण होना चाहिए ? जो कि प्रत्यक्ष देखने पर अप्रमाणित ही ठहरता है। उपर्युक्त विषयों में आधुनिक बैज्ञानिकों द्वारा यह समाधान दिया जा सकता है कि पृथ्वी गोल अवश्य है किन्तु वह खराद पर उतरी हुई वस्तु के समान सर्वथा गोल न होकर सम-विषम रूप में है क्योंकि उसमें कहीं पहाड़ हैं तो कहीं भूमि के रीले हैं जो ऊँचे हैं । इसी प्रकार कहीं समुद्र हैं और कहीं झीले हैं जो नीचे हैं। अतः कुरुक्षेत्र की भूमि कलकत्ते और कराँची के समुद्र से *-पृथ्वी का ब्यास ८००० मील, परिधि २५००० मील मानी गई है। कुरुक्षेन से कलकत्ता ६०० मील और करांची ६०० मील दूर है जिसकी छोटी परिधि १८०० मील हुई । जीवा (रज्जू) कुछ कम होने से १७५० मील मानलें । इसका वाम ५७२००० फीट के करीब होने से कलकत्ता और करांची की भूमि कुरु क्षेत्र से ५७२००० फीट नीची होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) करीब ६०० फीट ऊँची है और यही कारण है कि वहां से निकली गंगा को पूर्व की ओर का रास्ता नीची ढाल का मिला और सिन्धु को पश्चिम की ओग का रास्ता नोची ढाल का मिला । अतः उन्हें अन्त में जहाँ समुद्र मिला वहाँ उसमें विलीन हो गई । किन्तु यह समाधान भी अपूर्ण है । क्योंकि विज्ञान वादियों ने पृथ्वी को गोल होने के साथ ही भ्रमण करतों हुई भा माना है और जो गोल वस्तु घूमती है तो उसमें सदा एक रुपना न रहकर कभी ऊँचाई और कभी नीचाई का आते जाते रहना स्वाभाविक है अतः केवल ढलते पथ का वहाना लेकर जल की समतलता को प्रमाणित करना कयमपि सम्भव नहीं है यदि पृथ्वी को गोल ही माना जाय तो एक प्रश्न और सहज उठता है कि विश्व में बड़ो-बड़ो नहरों का जो निर्माण हुआ है उसमें गोलाकार सेमाने वालो कठिनाई को दूर करने के लिये तदनुसार गहराई क्यों नहीं दी गई ? उदाहरणार्थ - चान में बनी हुई सब से बड़ी नहर की लम्बाई ७०० मील जितनी और उसको रचना करते समय किसा भो प्रकार की गहराई नहीं दो गई है फिर भी वह आज यथोचित रूप में प्रवहमान है । तक इस प्रकार स्वेज के उत्तर की और १०० मील लम्बी नहर बनाने की योजन की । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ममय ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री लार्ड पालमर्स्टन ने सिविल इंजीनियर को संस्था के अध्यक्ष को लक्ष्य में रख कर जो वाक्य कहे थे वे भी बहुत स्मरणीय हैं । वे ये हैं सन् १८५५ में ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री ने कहा था कि"मि प्रे िदेट. ___ 'फनिनाण्ड द लेसेप्स' नामक एक फ्रेंच इंजीनियर भूमध्य-समुद्र और लाल-समुद्र के बीच केवल १०० मोल का समुद्रो मार्ग तैयार करने के लिए क्यों परिश्रम कर रहा है यह मुझे समझायेंगे ? स्वेज से उत्तर की ओर यह नहर बनाने की बात है । इस योजना के सम्बन्ध में प्रापने सुना तो होगा? अवश्य सुना है साहब, तब फिर ब्रिटिश इंजीनियरों ने इस कार्य को क्यों नहीं अपने हाथो में लिया है ? संक्षेप में मुझे अरपको इतना ही कहना है कि यह तो ब्रिटेन को प्रतिष्ठा को कालिमा लब रही है।' ब्रिटेन के इंजीनियरों को संस्था के अध्यक्ष ने ब्रिटिश प्रधानमन्बा के समक्ष स्पष्टीकरण करने हुए कहा कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) मैं और मेरे साथी ऐसा अभिप्राय रखते हैं कि-फ्रान्स के इन इजीनियरों की योजना आवश्य निष्फल होने वाली है। १०० मील जितने विस्तार में पृथ्वी के मुडाव द्वारा नहर के किनारे टूट जाएंगे । इस प्रकार की व्यवहार-हीन योजना के साथ अपना नाम जोड़ने की इच्छा ब्रिटिश इन्जिनियरों की नहीं है। " इसका तात्पर्य यह है कि ब्रिटेन के प्रधान यन्त्री को वहाँ के इन्जीनीयरों द्वारा स्वेज नहर के कार्य को करने से इस लिए निषेध किया था कि वे पृथ्वी को गोल मानते थे, और उसकी गोलाई के कारण होने वाले मोड़ के द्वारा जो हानि होने वाली थी उसके अपयश से अपने को बचाना ही श्रेयस्कर मानते थे। उपर्युक्त कथन को सन् १९५६ शुक्रवार दि० ६ जनवरी को 'गुजरात समाचार' में प्रकाशित "संसार सबरस" विभाग के सम्पादक ने लिखा था कि - स्वेज-नहर का निर्माण पृथ्वी चपटी है' इस सिद्धान्त को लक्ष्य में रखकर ही हुवा। स्वेजनहर की योजना को हाथ हाथ में लेने से पूर्व उसके निर्माता फ्रेंच इन्जीनियर द० लेसेप्स ने अपने दो साथी इन्जीनियरों 'कीनत-बे , और 'मुगलबे' की स्पष्ट शब्दों में कहा था कि-मित्रो, 'पृथ्वी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चपटी है' ऐसा मानकर ही हमें इस नहर की योजना तैयार करनी हैं। आज यह नितान्त स्पष्ट है कि उनके द्वारा बनाई गई स्वेज-नहर आज तक अपने उसी रूप में है और पृथ्वी के मोड़ से उत्पन्न होने वाली किसी भी हानि से वह बची रही है।" इगलिश पार्लियामेन्ट के सभा गृहों में भी ऐसा स्थायी नियम हैं कि-नहरें आदि निकालने के उपयोग में काम में ली जाने वाली 'आधार रेखा' एक प्राडी रेखा होगी और सारे ही कार्य की लम्बाई में वह समान ही रखी जायगी। इसी प्रकार ऐरिक नहर लोकपोस्ट की रौटेचर तक ६० मील लम्बी है। इस नहर-के उभार की गोलाई ६१० फुट होनी चाहिए और दोनों सिरों की अपेक्षा मध्य का उठाव ५६ फुट होना चाहिए। किन्तु स्टेट इंजीनियरों की रिपोर्ट बतलाती है कि यह ऊँचाई ३ फुट से भी कम है तो यह क्यों ? मि० जे० आर० यंग 'नौकागसन' विषयक ग्रन्थ में कहते हैं कि-नौका का मार्ग गोलाकार सपाटी पर होते हुए भी हम सीधी समाटी पर उस मार्ग की लम्बाई सीधी रेखा के द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं तथा समतल नौकावहन का वह नियम है और यदि वक्र रेखा को सुरेखा से प्रस्तुत करना हो तो यह सर्वथा अशक्य है और इसीलिए ऐसा प्रतिपादन किया जाता है कि सुरेखा सुरेखा को ही प्रस्तुत करती है किन्तु वक्ररेखा को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) नही। मि० यंग की पानी की समतलता ( सपाटो ) के सम्बन्ध की विचारणा से हैं इससे यह फलित होता है कि यह सपाटी सीधी सपाटी है । अर्थात् पृथ्वी गोल नहीं है। इन सबसे यह प्रमाणित होता है कि-पृथ्वी गोल नहीं है। तथा यह बात सुप्रसिद्ध और निर्विवाद है कि विषुववृत्त के उतर में जिस किसी अक्षांश पर वर्फ जमा होती है उसकी अपेक्षा दक्षिण में उनने ही अक्षांश पर अधिक वर्फ गिरती है । और यह कहा जाता है कि ५० अंश पर दक्षिण में करग्यस लाइन में १८ प्रकार के पौधे विद्यमान रहते हैं जब कि १५ अंश उत्तर केन्द्र में ९७० प्रकार के पौधे मिलते हैं। इस मम्बन्ध में ये घटनायें यह बताती हैं कि दक्षिण प्रदेश में सूर्य का ताप उतने ही अंश पर पाये हुए उतर के प्रदेश में होने वाले ताप का अपेक्षा न्यून तीव्रता वाला होता है। इस प्रकार जब को न्यूटन की सम्भावना के अनुसार यह सब गहन हैं, किन्तु 'पेरेलेक्स की गेटेकोक' फिजॉसफी के प्रकाश में लाये हुए सिद्वांत को सत्य घटनामों के साथ बराबर मिलान होता है । अतः यह भी एक प्रमाण है कि पृथ्वी गोल नहीं है। पृथ्वी को गोल मानने में एक आपत्ति यह भी है कि---- हम विषुववृत्त को दक्षिण में यात्रा करते हैं तो उत्तर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) ध्रुव का तारा असम्भव दिखना होता है, तथापि यह प्रसिद्ध है कि जब विषुववृत्त के दक्षिण में २० अंश से भी अधिक दूर तक नाविकों ने यात्रा की तो उन्होंने वहां ध्र वतारा देखा था। और यदि पृथ्वी के गोल मान भी लें तो उत्तर में जिस अक्षांश पर जितने समय तक उषःकाल रहता है, दक्षिण में भी उसी अक्षांश पर उतना ही उष:काल होना चाहिए पर होता नहीं है। क्योंकि उत्तर में ४० अंश पर यह उषःकाल ६० मिनिट तक रहता है, वर्ष के उसी समय मूमध्य रेखा के निकट में १५ मिनिट और दक्षिण में उसो ४० अक्षांश पर स्थित मेलबोर्न-आस्ट्रेलिया आदि प्रदेशों में केवल ५ मिनिट हो उषःकाल रहता है तो यह विवमता क्यों होती है ? पादरी फादर जोन्सटन ने इन दक्षिण अक्षांशों की साहप पूर्ण यात्रा को अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यहाँ उषःकाल और सन्ध्याकाल केवल ५ अयवा ६ मिनिट के लिए होता है । जब सूर्य क्षितिज पर पहुँचता है तब ही हम रात्रि का सारा प्रबन्ध कर लेते हैं । क्योंकि यहाँ जैसे हो सूर्य डूबता है कि तत्काल अन्धकारमय रात्रि हो जाती है। यह पृथ्वी को गोल मानने पर कयपि संगत नहीं होता है । उत्तर और दक्षिण प्रशांशों पर तो बराबर का हो उष:काल एवं सन्ध्या काल होना चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) साथ ही हम केप्टन जे० रास० की यात्रा की रिपोर्ट के द्वारा भी इसी निर्णय पर पहुँचते हैं कि पृथ्वी का प्राकार गोल नहीं है । क्योंकि एक ही दिशा में बिना मोड़ खाये ही पुनः उसी स्थान पर प्राजाने की वैज्ञानिक धारणा के अनुसार तो इन्हें चार बार पुनः उसी स्थान पर आना चाहिए था. चूंकि यहाँ पृथ्वी की परिधि मात्र १०७०० मील की है और साहसिक यात्री तो ४०००० मील चार वर्ष तक एक ही दिशा में चलते रहे और अन्ततः थककर वापस लौटे, यह कैसे सम्भव हुआ ! अतः यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी गोल नहीं है।' केप्टन जे० रास ने ई० सन् १८३८ में केप्टन फ्रांशियर के साथ दक्षिण क ओर अटलाण्टिक सर्कल में जितनी दूर तक जा सके उतनी दूरी तक यात्रा की और वहाँ पर उन्हें ४५० से लेकर १००० फुट तक ऊँची एक पक्की बर्फ की दीवाल खोजने पर मिली। उस दीवाल का ऊपरी भाग समतल था तथा उसमें कहीं कोई गडढा अथवा दरार नहीं थी । उस दीवाल पर वे चलते हो गये और चार वर्ष तक सतत चलते हुए ४०,००० मील को यात्रा सम्पन्न की फिर भी उस दीवाल का अन्त नहीं आया । और आखिर में वापस आये- यहाँ यह बात गम्भोरता से विचारणीय है। इस सम्बन्ध में एक और प्रमाण यह है कि प्रायः १८८५ ई० में "चेलेंजर" नामक ब्रिटिश जहाज ने दक्षिण प्रदेश की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) प्रदक्षिणा पूरी की है और इस प्रदक्षिणा में उसने लगभग ६६ हजार मील की यात्रा की है। अब यदि पृथ्वी को गोलाकार मानते हैं तो उसको परिधि प्रायः ६ से १० हजार मील से अधिक नहीं होती और चेलेंजर की यात्रा ६६ हजार मोल की है जो छः गुना अधिक है । यदि पृथ्वी को गोल माना जाय तो यह सम्भव नहीं है । और लीजिये - यदि पृथ्वी गोल होतो तो कर्क रेखा ( २३॥ अंश उत्तर ) का एक अंश = ४० मील माना जाता है तब मकररेखा ( २३|| प्रदेश दक्षिरण ) का वही अंश ७५ मील के करीब बैठता है, यहो नहीं परन्तु दक्षिण की ओर जितना ही बढ़ते जाएँ तो यह नाप बढ़ता हुआ १०३ मौल तक हो जाता है | यह क्यों ? और उत्तरीघ्रव के अन्वेषकों की रिपोर्ट के आधार पर उत्तरी ध्र ुव की ओर १०० पौण्ड का भार भी बहुत कठिनाई से उठाया जा सकता हैं, जब किं दक्षिणीध्रुव के अन्वेषकों की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि बे दक्षिणी ध्रुव की ओर श्रासानी से ३०० से ४०० पौण्ड का भार उठा सकते हैं । यदि पृथ्वी गोल होती तो दोनों ध्रुव प्रदेशों का वातावरण एक समान होना चाहिए । कोपृथ्वी गोल मानने के सम्बन्ध में एक तर्क दिया जाता है कि-चन्द्र के ऊपर गिरने वाली प्रतिच्छाया गोल दिखाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) देती है और यह छाया पृथ्वो को हो है इससे निश्चय होता है कि पृथ्वी गोल है। किन्तु पृथ्वी की गोलाई को मिद्ध करने के लिये दिया गया यह तक उचित नहीं है। क्योंकि एक अन्य मान्यता के अनुसार चन्द्र पर गिरने वालो यह छाया पृथ्वो की न होकर चन्द्र के नीचे राहु का विमान होने से राहु के श्याम रग के पीछे चन्द्र ढंक जाता है और उसी से चन्द्रग्रहण होता है । पोर यदि राहु का विमान गोल हो तो उससे भो चन्द्र पर गोल प्रतिच्छाया जैसा दीखसकता है। यहाँ क्या अकाट्य तर्क है कि चन्द्र पर छाया पृथ्वी की ही है अन्य किसी वस्तु को नहीं ? साथ हो दि० ३०-८-१९०५ ई० को जो सूर्यग्रहण हुआ था वह पश्चिमी-उत्तरी अफ्रिका, उत्तरी अन्ध-महासागर ग्रीनलेण्ड, आइसलेण्ड, उत्तरी एशिया, साइबेरिया और ब्रिटिश अमेरिका के सम्पूर्ण भागों में दिखाई दिया था तो अमरीका और एशिया में एक साथ सूर्य ग्रहए। कैसे दीखा जब कि पृथ्वी की गोलाई बीच में रहती हो? अतः स्पष्ट है कि पृथ्वी गोल नहीं है। पृथ्वो के एक भाग पर सर्य हो और दूसरे भाग पर चन्द्र हो और ये दोनों परस्पर पूर्णरूपग एक दूसरे के समक्ष हों तथा प.ध्वी बीच में हो तभी न्यूटन के सिद्धान्तानुसार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) चन्द्रग्रहण हो सकता है, परन्तु सूर्य और चन्द्र दोनों ही क्षितिज के ऊपर ऊंचे होते हैं तब भी चन्द्रग्रहण हुअा है। ( यदि चन्द्र और सूर्य दोनों हों तो प थ्वी उनके बीच में नहीं आ सकतो और यही कारण है कि पथ्वी की प्रतिच्छाया भी चन्द्र प. नहीं गिर सकती। पथ्वी की प्रतिच्छाया चन्द्र पर नहीं गिरती हो तब भी यदि चन्द्रप्रहण हो सकता हो, तो चन्द्रग्रहण पृथ्वी की प्रतिच्छाया के कारण नहीं अपि तु किसी अन्य कारण से होना चाहिए, इससे फलित होता है कि चन्द्र का ग्रहण करने बाली प्रतिच्छाया प थ्वी की नहीं हो सकती। अतः यह सिद्धान्त भी भ्रमपूर्ण है। इस तरह पृथ्वी को गोल मानने से उठने वाली आपत्तियो का विचार किया गया। अब पृथ्वी के गोल होने के सम्बन्ध में वर्तमान विज्ञान द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले तर्कों का विश्लेषण प्रस्तुत करते १-समुद्र में दूर जाते हुए जहाज का नीचे वाला भाग सर्वप्रथम धीरे-धीरे दिखाई देना बन्द होता है और बाद में उसके ऊपर का भाग भो दिखाई देना बन्द हो जाता है। प्रतः इससे ज्ञात होता है । कि समुद्र के किनारे पर खड़े हुए मनुष्य और समुद्र में चलते हुए जहाज के बीच पृथ्वी का गाल आकार वाला भाग आजाता है. उसी का परिणाम है कि जहाज का दोखना बन्द हो जाता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) वैज्ञानिकों के इस तर्क को वास्तविक मान लें तथा पृथ्वी के भाग को आवरण के रूप में आया हुआ मानकर जहाज का न दिखाई देना भी मान लें. तो प्रश्न होता है कि पृथ्वी पर पक्षी, पतंग और वायुयान आदि चीज जितनो बड़ी दिखाई देती हैं, वे चीजें जब आकाश में ऊँचाई पर पहुँच जाती हैं, तब वे भी क्रमशः लघु, लघुतर और लघुतम दाखने लगती हैं और पर्याप्त ऊँचाई पर पहुँच जाने पर अदृश्य भी हो जाती हैं। इसी प्रकार किसी ऊँचे पर्वत अथवा मीनार पर खड़ा हुआ मनुष्य बहुत ही छोटा वामनाकार दृष्टि गोचर होता है, तो इन सब के बोच कौनसा पृथ्वो का गोलाकार भाग आ जाता है ? नीचे खड़े रह कर देखने वाले मनुष्य और पर्वत पर स्थित मनुष्य के बीच अथवा आकाश में पर्याप्त ऊँचाई तक पहुँचे हुए पक्षी-पतंग या वायुयान के बीच पथ्वी का कोई भी गोलाकार भाग आवरण के रूप में उपस्थित नहीं होता है किर भो ने क्रमशः अत्यन्त छोटे और सनथा अदृश्य हो जाते हैं इसका क्या कारण है ? इस पर विचार करने से ज्ञात होता है कि जिस प्रकार उपयुक्त वस्तुओं की लघुता अथवा अदृश्यता में पथ्वी का गोलाकार कारण नहीं है, उसी प्रकार समुद्र में दूरी पर पहुचे हुए जहाज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ ) को क्रमिक अदृश्यता में भी पथ्वी का गोलाकार कारणभूत नहीं है अपितु हमारो दृष्टिशक्ति की मर्यादा इसमें हेतुरूप है । इस बात को समझने के लिये एक और उदाहरण लीजिये रेल्वे के दोनों पटरियों के बीच खड़े रहकर यदि दूर-दूर दृष्टि डालते हैं तो दोनों पटरियां मिलकर एक दिखाई देती हैं, जब कि वास्तविक स्थिति यह रहती है कि वे परस्पर मिलती नहीं ऐसी स्थिति में इसे दृष्टिदोष ही कहा जाएगा । हमारी आँख की कीकियाँ बहिर्गोल होती हैं । और बहिर्गोलता के कारण ही हम जिस वस्तु को देखते हैं वह ज्योंज्यों दूर होती जाती है त्यों-त्यों छोटी दिखाई देने लगती है । इसके अतिरिक्त आधुनिक गणितशास्त्र की यह मान्यता है कि प्रत्येक देखने वाला अपने चारों और स्थित वस्तुओं के साथ अपनी दृष्टि का ४५ अंश का कोण बनाता हुआ ही देख सकता है । उससे आगे की वस्तुएं दृष्टि से ओझल हो जाती हैं । इस ४५ अंश का जो कोरण बनता है. वह त्रिकोण बनता है और उसमें शून्य अंश से ४५ अंश तक कोई भी वस्तु क्रमश धीरे धीरे छोटी दिखने लगती है और ४५ अंश से अधिक दूर होने पर उनका दिखना बन्द हो जाता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) दूसरी बात यह भी है कि 'अप्रकाशित वस्तु की अपेक्षा प्रकाशित वस्तु (दीपक आदि तेजोमय) बहुत दूरी से देखी जा सकती हैं जैसे कि 'हेदेरास को भूशिर को लाइट हाउस ( दोवादग ) का दीपक ४० मील की दूरी से देखा जा सकता है।' यदि पृथ्वी गोल हो, तो पृथ्वी के गोलाकार भाग के वोच में प्राजाने से दीपक दिखाई नहीं देगा । पृथ्वी का गोलाकार यदि बोच में आता हो, तो ६०० फुट से नीचे रहने बाला दीपक ४० मील दूर स्थित कभी नही दिखाई देगा। इस दृष्टि से समुद्र में दूर जाने वाला जहाज और पर्वत या मीनार आदि पर स्थित वस्तुएं क्रमशः दूर दूर होने पर छोटी दिखाई देतो है पार ४५ अंश से प्राधिक दूर हाने पर उनका दिखना बन्द हो जाता है। पृथ्वो गोल हाने के साथ एक अन्य तर्क यह दिया जाता है कि (३यदि किसी खुले मैदान में खड़े रह कर बहुत दूर तक दृष्टि डालते है तो आकाश और पृथ्वी दोनों एक दूसरे से से मिलते हुए दिखाई देते हैं, इसे क्षितिनज रेखा कहते हैं। यह क्षितिज रेखा सदा गोलाकार हो दिखाई देतो है तथा हम जसे २ अधिक ऊँचाई पर जाते जाएंगे वैसे ही हम अधिकाधिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) दूरी पर देख सकते हैं । अतः यह स्थितिपृथ्वी गोल हो तभो हो सकती है। किन इस प्रकार आकाश और पृथ्वी का मिलन दिखाई देना भी एक प्रकार का दृष्टि दोष हो । क्योंकि ___ आंखें सदा देखते समय दिखने वाली चीज के साथ ४५ डिग्रो का कोण बनाती है - इसलिए ऊपर आसमान गोल गुम्बज जैसा दिखता है और जिधर भी झुका हुअा गोलाई का हिस्सा दिख रहा है वहीं पहुँचने पर वह भी गोल गुम्बज जैसा दिखाई पड़ता है इस का कारगा भो ४५ डिग्री का दृष्टिक्षेत्र हो है । इसी प्रकार चारों ओर दिशाओं एवं विदिशामों में तथा ऊपर भी चारों दिशा-विदिशाओं में ४५ डिग्री तक दृष्टिक्षेत्र है जो वृत्ताकार शुम्बज सा दिखता है। उसी प्रकार पश्चिम दिशा में खड़े हुए मनुष्य को दक्षिण दिशा पूर्व ज्ञान होमो तथा उत्तर की भोर खड़े हुए मनुष्य को. ऊपर आसमान .. दिखना है.। ... क्षितिज इस रूप में दिखबा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) उपर्युक्त चित्रों के अनुसार जो वस्तु दिखती है वह वृत्ताकार ही दिखाई देती है। अन्य बैज्ञानिक पृध्वी को गोल आकार वाली सिद्ध करने के लिये 'पृथ्वी-परिक्रमा' को आधार मानते हुए कुछ तर्क उपस्थित करते हैं। उनका कहना है कि पृथ्वी से हम एक हो दिशा में यात्रा करते हैं तो अन्त में हम अपने मूल स्थान पर वापस आपहुँचते हैं अतः पृथ्वी गोल किन्तु यह कारण सत्य नहीं है अपितु हम एक ही दिशा में सीधे-सीधे जाएं और वापस वहीं के वहीं लौट आएं हैं उसका दूसरा ही कारण है, और वह है दिक्षाभ्रम । हम मानते हैं कि हम एक ही निश्चत दिशा की ओर सीधे-सीधे जा रहे हैं यह केवल एक दिशाभ्रम से ही मानते हैं, किन्तु हम उस समय बिलकुल सीधे नहीं जा सकते अपि तु गोल मोड़ भो साथ-साथ लेते जलते हैं । यात्रा का मार्ग बहुत ही लम्बा होने से हमें उसका ध्यान नहीं रहमा है, परन्तु वस्तुतः हम जिसे एक सीधी दिशा मानते हैं वह सवथा सीधी नहीं होती है अपितु मोड़वालो होती है। जगत् में दिशाओं की पहचान के लिये मुख्यतः दो प्रकार के साधन उपयोग में आते हैं--(२) होकायन्ध (१) सूर्य और तारे। ये दोनों प्रकार के साधन दिशाभ्रम उत्पन्न करते हैं । और उससे हम भ्रम मैं पड़े हुए हैं यह दिशा भ्रम किस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) प्रकार उत्पन्न होता है इस पर थोड़ा विचार कर लें जिससे यह स्पष्ट हो जायगा कि यह यात्रा की मार्ग रेखा विलकुल सीधी न होकर वर्तुलाकार गोल है। उदाहरण के लिये जैसे - एक बड़ा सरोवर है, उसके किनारे चारों दिशाओं में चार द्वार हैं एक मनुष्य जलता हुमा दोपक लेकर सायकल पर बैठा हुआ सारे तालाव के चारों ओर गोल-गोल फिरता है । अ र एक मनुष्य तालाव के दक्षिणी किनारे पर स्थित दरवाजे के पास खड़ा है. दूसरा उत्तरों किनारे पर, तीसरा पूर्वी किनारे तथा चौथा पश्चिमी किनारे पर । तालाव बहुत बड़ा है और दीवक तालाव के किनारे पर ही दिखता है । जब कि सायकल पर बैठा हुप्रा मनुष्य दीपक लेकर उत्तरा किनारे की अोर होता है । तब पूर्वी किनारे पर खड़ा हुप्रा मनुष्य उसको देख सकता है और वह कुछ दक्षिणी किनारे की ओर पहुंचता है तब तक हो देख सकता है। इसी प्रकार चारों ओर खड़े हुए मनुष्य अपनी दो बाजुनों तक के दीपक देऊ सकते हैं। सोचिये कि जिस दिशा में दोपकः दिखाई देता है वह .पूर्व दिशा कहीं जाय तो नीचे लिखे अनुसार पूर्व दिशाएं होंगी। ___ जब दोपक वाली सायकल उत्तरी दरवाजे पर पहुचेगा तब पूर्वी दरवाजे पर खड़े हुए मनुष्य को दीपक दिखने का प्रारम्भ होने से उत्तरी दरवाजे का स्थान पूर्व दिशा ज्ञान होगो पूर्वी दरवाजे पर पायेगा तव दक्षिणो द्वार पर खड़े मनुष्य को वह दिखेगा अतः दक्षिणदिशा वाले को पूर्व प्रतीत होगी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) वर्तमान विश्व में भी इस प्रकार सूर्य अथवा तारे और होकायन्त्र की सहायता से ही दिशाओं का ज्ञान करके ही मात्रा करते हैं और उसी से ऊपर बताये अनुसार दिशाश्रम होने से गोलाकार यात्रा करने पर भी उसे सोधी दिशा ही मान ली जाती है । इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि पृथ्वी गोल नहीं 3 पृथ्वी पर की जाने वाली यह यात्रा पूर्वं अथवा पश्चिम दिशा में ही की जा सकती है यदि पृथ्वा नारंगी के समान गोल हो तो उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में भी यात्रा होनी चाहिए तथा श्रास्ट्रलिया से निकल कर उत्तर में चीन, एशिया, उत्तर ध्रुव प्रदेश, केनेड़ा दक्षिण अमेरिका होकर दक्षिण ध्रुब लाँघ ' आस्ट्रेलिया में वापस आना चाहिए । किन्तु हम यह जानते है कि वहां तक ट्र ेन, स्टीमर अथवा एरोप्लेन द्वारा उत्तर दक्षिण को सीधी एक भी यात्रा आजतक नहीं हुई है । उत्तर ध्रुव को लांघा जा सकता है। पृथ्वी गोल न हो तो भी वह लांघा जा सकता है । परन्तु दक्षिणी ध्रुव लांघा नहीं जा सकता यदि पृथ्वी नारंगी के आकार में गोल हो तभी ऊपर दिखाये अनुसार उत्तर-दक्षिण की सीधी यात्रा हो सकती है । पृथ्वी नारंगी के प्राकार में मोल हो तो उत्तर-दक्षिण दिशा की सोघी यात्रा होनी हा चाहिए परन्तु हमारी जानकारी में इस प्रकार को उत्तर www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat + Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) दक्षिण दिशा को सीधी यात्रा न तो हुई है न होना ही सम्भव अब पदि हम समतल भूमि पर एक गधे को खूटे से बांध देते हैं और वह उसके चारों ओर पड़ी हुई घास को खाता है तो वह.एक थालो के पास-पास फिरता ही इस प्रकार गोल-गोल घूमता है किन्तु गोले के आस पास घूमता तो ऐसा नहीं लगता एरोप्लेन से जहाज के ......."पर से अथवा गधा जहां खड़ा हो उसे स्थान से कहीं से भी देखा जाय तो चक्राकार गोला दिखाई देगा। इससे यह प्रमाणित होगा है कि पृथ्वो गोला नहीं है । आधुनिक विज्ञानवादो इस बात पर भी-अधिक बल देते हैं कि-लोगों ने पृथ्वी के आस-पास चारों ओर जहाज द्वारा यात्रा की है। अतः पृथ्वी का प्राकार गोल होना चाहिए किन्तु इससे तो यह ज्ञान होता है कि यदि काई वस्तु गोलाकार न हो, तो उसके आस पास हम यात्रा ही नहीं कर सकते। वरन ऐसा नहीं है क्योंकि यह प्रसिद्ध है कि चपटा पृथ्वो के आस-पास भी जहाज द्वारा यात्रा की गई है। यह भी पृथ्वा के गालाकार होने में बाधक हैं । एक तर्क यह भी दिया जाता है कि पानो अथवा समुद्र में एक-एक मील की दूरी पर एक समान आकारवाली तान लकड़ियाँ इस रूप में खड़ी की की जांय कि प्रत्येक का एकसा भाग पानी में डूबा हुआ हो, और शेष भाग भी एकसा हो पानी के बाहर निकला हुआ हो तथा वे तीनों लकड़ियाँ एकसी सीधी पंक्ति में हों। " तब जो पहली लकड़ी ऊपरी सिरे से देखेंगे तो पहली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४ ) और तीसरी लकड़ी एक सीधी पक्ति में दिखाई देगी, जब कि बीच की लकड़ी अधिक ऊँची दिखाई देगी तो यह पृथ्वी के गोलाकार होने से होता है । अतः यह ज्ञान होता है कि पृथ्वी गोल है। इस तर्क में भा कोई तथ्य दृष्टिगत नहीं होना । क्यों कि तीन मील तक इस प्रकार सोधी लकड़िए समुद्र में देख सकना असम्भव है और यह प्रयोग करके देखा गया हो, इसमें भी शका होती है क्योंकि ऐसा प्रयोग किसने कहां कब किया? यह स्पष्ट नहीं बताया गया है। तथापि मान लें कि ऐसा प्रयोग किसी ने किया हो और ऊपर दिखाये अनुसार यदि बीच की लकड़ी का सिरा ऊंचा दिखाई भी दिया हो तो भी उसे दृष्टिभ्रम ही मानना चाहिए। इसके लिये रेल्वे के दोनों परियों के सम्बन्ध में दिया गया उदाहरण पर्याप्त है। साथ ही सीधी सड़क और रेल्वे प्लेट फार्म कि जो यथासम्भव एक समान धरातल पर बना हुआ होता है पर एकसी ऊंचाई वाले इलेक्ट्रिक लाइट के खम्भों पर लटू जलते रहते हैं। प्लेट फार्म के एक छोर से लट्टुओं पर दृष्टि डालेंगे तो सब से पहला लटू ऊँचा दिखाई देगा और बाद के क्रमशः नीचेनीचे दिखेंगे। प्लेट फार्म की सड़क समान धरातल वाली हाते हुए भी सभी लट्टू क्रमशः विरोही दिखते हैं यह दृष्टि है । और इसमें कभी बोच का खम्भा या लट्टू ऊँचा नहीं दिखाई देता । अतः यह प्रत्यक्ष विरोध आता है । इसौसे यह कहा गया है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) तीन लकड़ियों का प्रयोग किसी ने कपोल-कल्पित बनाया है। यदि ऐसा हो प्रयोग नौ लकड़ियों द्वारा करके देखे तो कभी भी तो ऐसा नही होगा कि प्रारम्भ की तीन लकड़ियों के बाद सभी नीची न दीखकर पांचवी लकड़ी ही ऊची दोखने लगे.? अतः यह तर्क: अप्रमाणित ही माननाः माहिए । शुडलर अपनी पुस्तक " बुक ऑफ ने उच" [प्रकृतिपुस्तिका ) में कहता है कि सचमुच निरीक्षण के पश्चात हम यह कह सकते हैं । कि अन्य आकाशीय पदार्थ गोलाकार हैं अतः बिना किसो ननु नच" के यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि पृथ्वी भो वैसी ही गोलाकार है। किन्तु यह अनुमान करना उचित नहीं है क्योंकि आकाशोय पदार्थों को गोलाकार सिद्ध करने के लिये कोई आधार नहीं है और पृथ्वी आकाशीय पदार्थ है यह भी अब तक प्रमाणित नहीं हो पाया है। अतः इस प्रकार के अनुमान सर्वथा निराधार हैं। उपसंहार-- इस प्रकार विज्ञान द्वारा प्रायः प्रमाणित माना जाने वाला पृथ्वी के गोल आकार का सिद्धान्त तर्क एवं बुद्धि की कसौटी पर निखरता नहीं है। अभी इसके वारे में पर्याप्त सशोधन अतेक्षित है। जब तक विज्ञान पृथ्वी के सही आकार के सम्बन्ध में अपना अभिमत स्पष्टरूप से प्रकट न करे तब तक अन्तर की सूझ के आधार पर निर्भरित प्रात्मशक्ति से निखरा हुआ तत्व Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६ ) ज्ञान हमें जा बातें बता रहा है उनके प्रति हम निरपेक्ष न हों। भले ही सत्वतत्व को जिज्ञासा को कसोटी पर चढ़ा कर सोचने की कोशिश करं, परन्तु सीमित बुद्धि एवं साधनों के कारण यदि तत्त्वज्ञान की बातों का यथार्थ निर्णय कर नहीं पायें तो अंगूर खट्टे हैं, वाली बात न करते हुए हमें सदा तीब्र जिज्ञासा के साथ सत्य की दिशा में आगे बढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए। बदसः इस लघु पुस्तिका के आलेखन के पीछे यही शुभ कामना है। विज्ञ पाठक गण इसे सफल बनायें। ।। शिवमस्तु सर्व जगतः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक की भोर से प्राज मन और बुद्धि के क्षेत्र में निरन्तर अधिक विकास होते रहने के कारण 'उसके मापदण्ड से जो समझ में आये वही सत्य' ऐसा विज्ञानवाद की चकाचौंध में पड़े हुए बुद्धिजीवियों का मानस बनता जा रहा है। यही कारण है कि बुद्धि के बाह्य घटाटोप तथा मञ्च के बल पर जनता के अधिनायक बनकर बैठे हुए विद्वानों के पीछे सामान्य जनता भी आकृष्ट हो रही है। फलतः बुद्धि और मन से अगोचर सनातन सत्य के स्वरूप का संवेदन जीवन शुद्धि द्वारा करने का राजमार्ग प्रायः अपरिचित बनता जा रहा है । इसी से तत्त्वज्ञान और संस्कृति के बहुमूल्य तत्त्वों का अवमूल्यन होने लगता है। मन और बुद्धि से भी आगे स्वसंवेदन की भूमिका पर पहुँच कर ज्ञात किये गये सर्वहितकारी सनातन सत्यों के बदले में बुद्धि और मन की चित्र-विचित्र कल्पनाओं की आधारशिला पर आज अतीन्द्रिय पदार्थों की विकृत मान्यताएँ प्रस्तुत हो रही हैं तथा सांस्कृतिक ह्रास करने के मलिन प्राशय वाली काल्पनिक मान्यताओं को राजकीय नेतृगण राज्याश्रय देकर अधिक से अधिक साकार बना ऐसी मान्यताओं में "पृथ्वी गोल है और वह घूमती है" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) यह मान्यता प्रधान है । क्योंकि-यह मान्यता प्रचलित होकर जनता के हृदय में दृढ़ हो जाय तो मानवजीवन के आध्यात्मिक उत्थान की नींव के समान स्वर्ग-नरक, पुण्य-पाप, प्रात्मा-परमात्मा और मोक्ष आदि का निरूपण करने वाले शास्त्रों पर से जनता की श्रद्धा डिग जाय । फलतः भौतिकवाद के बन्धन से आर्यप्रजा को बचाने वाली आध्यात्मिक संस्कृति नष्ट हो जाय । इसी से आज प्रायः सभी शिक्षितों में "पृथ्वी गोल - है-घूमती है" की मान्यता बहुत ही रूढ बन गई है, मुग्ध जनता शिक्षित समुदाय के भाषाजन्य वर्चस्व से प्रभावित होकर ऐसी भ्रामक मान्यताओं को भी जाने-अनजाने अपना लेती है। भावी प्रजा के हृदय में भी बाल्यकाल से ही शालेय पुस्तकों के माध्यम से इस विसंवादी मान्यता का बीजारोपण किया जाता है। अतः आज की इस विषम परिस्थिति के समक्ष 'लालबत्ती' के समान यह पुस्तक है । विद्वान् पाठक तटस्थ वृत्ति से विचार करते द्रा, योग्य समीक्षा के साथ इसमें निहित विचारों को पढ़े और विचारें तथा मान्यताओं के पूर्वाग्रह से मुक्त होकर वस्तुस्थिति को समझने का उचित प्रयास करें, यह अपेक्षित है। -मुनि अभय सागर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजम्बूद्वीप-निर्माण-योजना [ सक्षिप्त परिचय ] ( 'पृथ्वी गोल नहीं है, एवं वह घूमती भी नहीं है' इस बात को विज्ञान एवं शास्त्रों के अकाट्य प्रमारणों से सिद्ध करने का अपूर्व प्रयास ) वर्तमान भूगोल सम्बन्धी धारणाओं के बल पर नवयुगीन शिक्षितवर्ग के मानस में स्वर्ग, नरक, पुण्य-पाप एवं प्रात्मवाद आदि बातों के प्रति श्रद्धा शिथिल होती जा रही है तथा 'पृथ्वी गोल है, पृथ्वी घूमती है, भारत और अमेरिका के बीच सूर्य के उदयास्त का अन्तर, ध्रुव-प्रदेश में छः छः मास के रात-दिन, चन्द्रलोक में स्पुतनिकों को पहुंच, मंगल, और शुक्र के प्रवास की योजना' आदि आधुनिक वैज्ञानिकों की कल्पनातीत बातों के आधार पर "जैन शास्त्रों की बातें कोरी कल्पना हैं" ऐसा कुतर्क उपस्थित हो रहा है। इस मिथ्याभ्रम को दूर करने तथा शासन, धर्म और शास्त्रों के प्रति सच्ची श्रद्धा स्थिर करने के लिये परम पूज्य प्रागमोद्धारक ध्यानस्थ स्वर्गत प्राचार्य श्रीमानन्द सागरजी महा० सा० के पट्टधर पूज्य गच्छाधिपति प्राचार्य श्रीमाणिक्य सागरजी महा० सा० के मंगल आशीर्वाद एवं उत्साह पूर्ण प्रेरणा को पाकर कपड़वंज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्रीसंघ ने सिद्धगिरि पालीतारणा (सौराष्ट्र) में एक जम्बूद्वीप मन्दिर के निर्माण की योजना तैयार की है । जिसमें शास्त्रीय नाप से एक लाख योजन वाले इस जम्बूद्वीप की रचना सर्वसाधारण के समझने योग्य फुट और इंच के स्केल से १६०x१६० फुट की प्राकृति में होगी,जिसके द्वारा सूर्य चन्द्र आदि की गति एवं पृथ्वीको वर्तमान परिस्थिति का सही चित्रण दिखाकर प्रयोगात्मक रूप से आज के विसंवादी भौगोलिक प्रश्नों का बुद्धिगम्य सही निराकरण प्रस्तुत किया जायगा । इस मन्दिर के लिये श्रीसिद्धगिरि-पालीतारणा में तलहटी के पास २७ हजार गज विशाल भूमि (प्लाट) सवा लाख रुपये की लागत से खरीदने का मंगल कार्य वि० सं० २०२३ की श्रावण शुक्ला १० गुरुवार को किया जा चुका है। अतः भारतीय तत्त्वज्ञान की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले इस पवित्र कार्य में प्रत्येक प्रार्यसंस्कृति प्रेमी जनता को सहयोग देने का सादर निमन्त्रण है। निवेदकपूनमचन्द पानाचन्द शाह कार्यवाहक-श्रीजम्बूद्वीप-निर्माण-योजना . कपड़वंज, जि० खेड़ा ( गुजरात ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वी के आकार प्रादि समस्त विषयों को शास्त्रीय दृष्टि से समझने के लिये निम्नलिखित प्राचीन जैन ग्रंथों का __ अनुशीलन उपादेय है* श्रीजम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति * श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति * श्रीचन्द्रप्रज्ञप्ति * श्रीबृहत् क्षेत्र समास * श्रीलघु क्षेत्र समास * श्रीबृहत् संग्रहणी * श्रीक्षेत्र लोक प्रकाश * श्रीकाल लोक प्रकाश * श्रीमण्डल-प्रकरण * श्रीजम्बूद्वीप समास * श्रीजम्बूद्वीप सागर प्रज्ञप्ति * श्रीजम्बूद्वीप-संग्रहणी * श्रीतत्त्वार्थ सूत्र * श्रीतत्त्वार्थ सूत्र श्लोक वार्तिक आदि। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वी के प्राकार प्रादि समस्त विषयों को अाधुनिक दृष्टि से समझने के लिये निम्नलिखित ग्रन्थों का अनुशीलन हितावह है१-वन हण्ड्रेट प्रूफस् देट दि अर्थ इज नॉट ए ग्लोब (ले० अमेरिका के विद्वान्-विलियम कार्पेन्टर ) २-मॉडर्न साइन्स एण्ड जैन फिलासफी ३-पी० एल० ज्योग्रोफी भा० १-२-३-४ ४-जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान ५-भूगोल-भ्रमरण-मीमांसा ६-विश्व रचना प्रबन्ध ७-जैन भूगोल ( महत्त्वपूर्ण प्रामाणिक ग्रन्थ ) ८-जैन खगोल ( महत्त्वपूर्ण प्रामाणिक ग्रन्थ ) ६-जैन भूगोल की विशालकाय प्रस्तावना १०-पृथ्वी स्थिर प्रकाश ११-दि इण्डोलॉजिकल मेगजीन जुलाय-अगस्त १९४६ १२-सन् डे न्यूज आफ इण्डिया २-५-१९४८ १३-अहिंसा वाणी, विशाल भारत, धर्मयुग आदि के प्रकीर्ण अंक -x-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री यशा वर्तमान विज्ञान की बातों के मामि। एवं शास्त्रीय बातों के तत्त्वानु | --की दिशा में प्रेरक साहित्य Deat 1. भूगोल-विज्ञान-समीक्षा-(प्राचीन तथा अव विचारों का मार्मि२. सोचो और समझो-(पृथ्वी के गोल आकार एवं भ्रमण के बारे / विजान दारा प्रस्तुत कतिपय तर्कों का बुद्धिगम्य निराकरण (विज्ञान की कसौटी पर आवश्यक विश्लेषण) 4. पृथ्वी को गतिः एक समस्या 5. प्रश्नावली हिन्दी-(पृथ्वी के आकार एवं भ्रमण के विषय में) 6. प्रश्नावली-गुजराती ( " , " ) 7. प्रश्नावली-अंग्रेजी ( 8. मुंए खरू हशे? (गुजराती) (भौगोलिक तथ्यों (!) के बारे में परिसंवाद) 8. कौन क्या कहता है ? भाग-१-२ (पृथ्वी की गति और आकार आदि के बारे में लब्ध प्रतिष्ठ भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों का संकलन) इस विषय के अधिक विमर्श के लिये नीचे लिखे पते पर पत्र व्यवहार करें पूज्य मुनिराज श्री अभयसागर जी महाराज पुस्तक प्राप्तिस्थान . c/o पं० रतिलालजी दोशों सेठ पूनमचन्द्र पानाचन्द्र शाह दिलीप नोवेल्टी स्टोस कायवाहक जम्बूद्वीप निर्माण योजना पो० ऑ० महेसारणा 'दलाल वाडा. पो० कपडवंज जि. अहमदाबाद जि० खेड़ा (गुजरात) (गुजरात) आवरण मुद्रक-त्रिलोकी नाथ मीतल, अग्रवाल प्रेस, मथुरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com