SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय वर्तमान समय में विज्ञान द्वारा प्रदत्त अनेकानेक भौतिक सुविधाओं की चकाचौंध से सर्वसाधारण जन-जीवन आमूल-चूल प्रभावित प्रतीत होता है । जागतिक सुखों की आँधी में उत्तरोत्तर प्रतिस्पर्धा करता हुआ आज का मानव धीरे-धीरे हमारे ऋषि-प्रणीत उत्तमोत्तम सारभूत धर्मग्रन्थों के प्रति भी शिथिल श्रद्धा वाला बनता जा रहा है । ___ भारतीय प्रास्तिक जगत् को अपने धर्मशास्त्रों में वर्णित भूगोल-सम्बन्धी विचारों के प्रति निष्ठा स्थिर रखने के लिये ऐसे अवसर पर एक महत्त्वपूर्ण उद्बोधन की पूर्ण पावश्यकता है, अन्यथा यह ह्रसनशील प्रवृत्ति क्रमशः निम्नस्तर पर पहुँचती ही जायगी तथा ईश्वर न करे कि वह दिन भी देखना पड़े कि जब स्वर्ग, नरक, पुण्य-पाप, आत्मा-परमात्मा आदि सभी निरर्थक कल्पनामात्र कहने लग जाय ! इस विषम परिस्थिति को ध्यान में रखकर गत सोलह वर्षों से परमपूज्य उपाध्याय श्रीधर्मसागरजी महाराज के चरणोपासक पूज्य गणिवर्य श्रीअभयसागरजी महाराज ने स्वदेश एवं विदेश के भौगोलिक-विज्ञान का अध्ययन-अनुशीलन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ww www.umaragyanbhandar.com
SR No.034930
Book TitleKya Pruthvi ka Aakar Gol Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJambudwip Nirman Yojna
Publication Year1968
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy