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________________ (२०) उपर्युक्त चित्रों के अनुसार जो वस्तु दिखती है वह वृत्ताकार ही दिखाई देती है। अन्य बैज्ञानिक पृध्वी को गोल आकार वाली सिद्ध करने के लिये 'पृथ्वी-परिक्रमा' को आधार मानते हुए कुछ तर्क उपस्थित करते हैं। उनका कहना है कि पृथ्वी से हम एक हो दिशा में यात्रा करते हैं तो अन्त में हम अपने मूल स्थान पर वापस आपहुँचते हैं अतः पृथ्वी गोल किन्तु यह कारण सत्य नहीं है अपितु हम एक ही दिशा में सीधे-सीधे जाएं और वापस वहीं के वहीं लौट आएं हैं उसका दूसरा ही कारण है, और वह है दिक्षाभ्रम । हम मानते हैं कि हम एक ही निश्चत दिशा की ओर सीधे-सीधे जा रहे हैं यह केवल एक दिशाभ्रम से ही मानते हैं, किन्तु हम उस समय बिलकुल सीधे नहीं जा सकते अपि तु गोल मोड़ भो साथ-साथ लेते जलते हैं । यात्रा का मार्ग बहुत ही लम्बा होने से हमें उसका ध्यान नहीं रहमा है, परन्तु वस्तुतः हम जिसे एक सीधी दिशा मानते हैं वह सवथा सीधी नहीं होती है अपितु मोड़वालो होती है। जगत् में दिशाओं की पहचान के लिये मुख्यतः दो प्रकार के साधन उपयोग में आते हैं--(२) होकायन्ध (१) सूर्य और तारे। ये दोनों प्रकार के साधन दिशाभ्रम उत्पन्न करते हैं । और उससे हम भ्रम मैं पड़े हुए हैं यह दिशा भ्रम किस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034930
Book TitleKya Pruthvi ka Aakar Gol Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJambudwip Nirman Yojna
Publication Year1968
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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