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घोरूप माना गया है जब कि पृथ्वी का ऐसा घुमाव विज्ञानसम्मत नहीं है और यदि वैसा घुमाव पृथ्वी का मान भी लिया जाय तो ऊर्ध्वभागस्थित तथा अधोभागस्थित समुद्रों में गड्ढे पड़ने चाहिये किन्तु वैसा कहीं उल्लेख नहीं किया गया है ।
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समुद्र के पानी में नोचे कहीं गड्डे नहीं हैं, और उत्तरी प्रौर एवं दक्षिण पोलों मे जो गड्ढे माने जाते हैं वे असम्भव हैं । यदि " दाएँ और बाएँ घूमने से पोलों में गड्ढे पड़ गये हैं । ऐसा कहा जाय तो यह भी तर्क संगत नहीं है क्योंकि पोलों में समुद्र का पानी नहीं माना गया है । अतः पृथ्वी के घूमने से दोनों ओर गड्ढे पड़ गये हैं और वह गड्ढों के कारण ही चपटी हो गई है तथा चपटी होने से पानी समतलरूप में स्थित है' यह उत्तर सर्वथा निराधार हो जाता है ।
यदि यह कहा जाय कि वहाँ तो बिना पानी के ही गड्ढा बना हुआ है तो यह भी असम्भव है । क्योंकि 'पत्थर, मिट्टी अथवा काठ का गोला जो पृथ्वी रूप हो, वह किसी भी प्रकार से क्यों न घूमता हो उसमें गड्ढा नही पड़ सकता, यह प्रत्यक्ष देखा जाता है । अतः पृथ्वी को गोल मानना मिथ्याभ्रान्ति मात्र है ।
तीसरा प्रश्न यह उठता है कि - यदि पृथ्वी गोल आकार वाली हो तो गंगा और सिन्धु जैसी नदियों के बहाब में अन्तर
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