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किन्तु वस्तुतः उनके द्वारा उपस्थापित तर्क, उदाहरण एवं प्रमाणों पर विचार किया जाय तो वे अपर्याप्त, त्रुटिपूर्ण और अपने आप में भ्रमपूरण हैं । हम आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा दिये जाने वाले उन तर्कादि पर क्रमिक विश्लेषण यहाँ प्रस्तुत कर उनके औचित्य पर संक्षेप में विचार करंगे जिसस हमारी भ्रान्तियाँ दूर हा तथा अवचान विज्ञान - सम्बन्धा मान्यताओं के बल पर हमारे प्राचान आागमा और वेदादि-शास्त्रों में वर्णित भूगोल- विज्ञान के प्रति बढ़ती हुई अनास्था को सदा के लिये हृदय से विदा करदें ।
इसके लिये सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि पृथ्वा को गोल मानने से कितना और कोन २ सा आपत्तियाँ उठतो है जिनका कि निराकरण तर्कशुद्ध युक्तियां के द्वारा हा नहीं
पाता ।
पहले इसी दृष्टि कोण से सोचें- यदि पृथ्वी गोल है ता उस पर स्थित अगाध जल - राशि समतल नहीं हो सकता, क्योंकि किसी भी गोलाकार वस्तु पर पानो समस्थल रूप में नहीं ठहर सकता जिसका प्रत्यक्ष कारण यह है कि परिधि में ऊँचाईनीचाई रहतो है ।
इसका उत्तर यदि यह दिया जाय कि -- "पानी गोलाकार पर भी स्थिर रह सकता है क्योंकि केन्द्र सब ओर से
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