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( २४ ) यह मान्यता प्रधान है । क्योंकि-यह मान्यता प्रचलित होकर जनता के हृदय में दृढ़ हो जाय तो मानवजीवन के आध्यात्मिक उत्थान की नींव के समान स्वर्ग-नरक, पुण्य-पाप, प्रात्मा-परमात्मा और मोक्ष आदि का निरूपण करने वाले शास्त्रों पर से जनता की श्रद्धा डिग जाय । फलतः भौतिकवाद के बन्धन से आर्यप्रजा को बचाने वाली आध्यात्मिक संस्कृति नष्ट हो जाय ।
इसी से आज प्रायः सभी शिक्षितों में "पृथ्वी गोल - है-घूमती है" की मान्यता बहुत ही रूढ बन गई है, मुग्ध जनता शिक्षित समुदाय के भाषाजन्य वर्चस्व से प्रभावित होकर ऐसी भ्रामक मान्यताओं को भी जाने-अनजाने अपना लेती है।
भावी प्रजा के हृदय में भी बाल्यकाल से ही शालेय पुस्तकों के माध्यम से इस विसंवादी मान्यता का बीजारोपण किया जाता है।
अतः आज की इस विषम परिस्थिति के समक्ष 'लालबत्ती' के समान यह पुस्तक है ।
विद्वान् पाठक तटस्थ वृत्ति से विचार करते द्रा, योग्य समीक्षा के साथ इसमें निहित विचारों को पढ़े और विचारें तथा मान्यताओं के पूर्वाग्रह से मुक्त होकर वस्तुस्थिति को समझने का उचित प्रयास करें, यह अपेक्षित है।
-मुनि अभय सागर
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