Book Title: Kya Pruthvi ka Aakar Gol Hai
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jambudwip Nirman Yojna

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ (२४ ) और तीसरी लकड़ी एक सीधी पक्ति में दिखाई देगी, जब कि बीच की लकड़ी अधिक ऊँची दिखाई देगी तो यह पृथ्वी के गोलाकार होने से होता है । अतः यह ज्ञान होता है कि पृथ्वी गोल है। इस तर्क में भा कोई तथ्य दृष्टिगत नहीं होना । क्यों कि तीन मील तक इस प्रकार सोधी लकड़िए समुद्र में देख सकना असम्भव है और यह प्रयोग करके देखा गया हो, इसमें भी शका होती है क्योंकि ऐसा प्रयोग किसने कहां कब किया? यह स्पष्ट नहीं बताया गया है। तथापि मान लें कि ऐसा प्रयोग किसी ने किया हो और ऊपर दिखाये अनुसार यदि बीच की लकड़ी का सिरा ऊंचा दिखाई भी दिया हो तो भी उसे दृष्टिभ्रम ही मानना चाहिए। इसके लिये रेल्वे के दोनों परियों के सम्बन्ध में दिया गया उदाहरण पर्याप्त है। साथ ही सीधी सड़क और रेल्वे प्लेट फार्म कि जो यथासम्भव एक समान धरातल पर बना हुआ होता है पर एकसी ऊंचाई वाले इलेक्ट्रिक लाइट के खम्भों पर लटू जलते रहते हैं। प्लेट फार्म के एक छोर से लट्टुओं पर दृष्टि डालेंगे तो सब से पहला लटू ऊँचा दिखाई देगा और बाद के क्रमशः नीचेनीचे दिखेंगे। प्लेट फार्म की सड़क समान धरातल वाली हाते हुए भी सभी लट्टू क्रमशः विरोही दिखते हैं यह दृष्टि है । और इसमें कभी बोच का खम्भा या लट्टू ऊँचा नहीं दिखाई देता । अतः यह प्रत्यक्ष विरोध आता है । इसौसे यह कहा गया है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38