Book Title: Kya Pruthvi ka Aakar Gol Hai
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jambudwip Nirman Yojna

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Page 17
________________ ( १२ ) साथ ही हम केप्टन जे० रास० की यात्रा की रिपोर्ट के द्वारा भी इसी निर्णय पर पहुँचते हैं कि पृथ्वी का प्राकार गोल नहीं है । क्योंकि एक ही दिशा में बिना मोड़ खाये ही पुनः उसी स्थान पर प्राजाने की वैज्ञानिक धारणा के अनुसार तो इन्हें चार बार पुनः उसी स्थान पर आना चाहिए था. चूंकि यहाँ पृथ्वी की परिधि मात्र १०७०० मील की है और साहसिक यात्री तो ४०००० मील चार वर्ष तक एक ही दिशा में चलते रहे और अन्ततः थककर वापस लौटे, यह कैसे सम्भव हुआ ! अतः यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी गोल नहीं है।' केप्टन जे० रास ने ई० सन् १८३८ में केप्टन फ्रांशियर के साथ दक्षिण क ओर अटलाण्टिक सर्कल में जितनी दूर तक जा सके उतनी दूरी तक यात्रा की और वहाँ पर उन्हें ४५० से लेकर १००० फुट तक ऊँची एक पक्की बर्फ की दीवाल खोजने पर मिली। उस दीवाल का ऊपरी भाग समतल था तथा उसमें कहीं कोई गडढा अथवा दरार नहीं थी । उस दीवाल पर वे चलते हो गये और चार वर्ष तक सतत चलते हुए ४०,००० मील को यात्रा सम्पन्न की फिर भी उस दीवाल का अन्त नहीं आया । और आखिर में वापस आये- यहाँ यह बात गम्भोरता से विचारणीय है। इस सम्बन्ध में एक और प्रमाण यह है कि प्रायः १८८५ ई० में "चेलेंजर" नामक ब्रिटिश जहाज ने दक्षिण प्रदेश की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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