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ध्रुव का तारा असम्भव दिखना होता है, तथापि यह प्रसिद्ध है कि जब विषुववृत्त के दक्षिण में २० अंश से भी अधिक दूर तक नाविकों ने यात्रा की तो उन्होंने वहां ध्र वतारा देखा था।
और यदि पृथ्वी के गोल मान भी लें तो
उत्तर में जिस अक्षांश पर जितने समय तक उषःकाल रहता है, दक्षिण में भी उसी अक्षांश पर उतना ही उष:काल होना चाहिए पर होता नहीं है। क्योंकि उत्तर में ४० अंश पर यह उषःकाल ६० मिनिट तक रहता है, वर्ष के उसी समय मूमध्य रेखा के निकट में १५ मिनिट और दक्षिण में उसो ४० अक्षांश पर स्थित मेलबोर्न-आस्ट्रेलिया आदि प्रदेशों में केवल ५ मिनिट हो उषःकाल रहता है तो यह विवमता क्यों होती है ?
पादरी फादर जोन्सटन ने इन दक्षिण अक्षांशों की साहप पूर्ण यात्रा को अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यहाँ उषःकाल और सन्ध्याकाल केवल ५ अयवा ६ मिनिट के लिए होता है । जब सूर्य क्षितिज पर पहुँचता है तब ही हम रात्रि का सारा प्रबन्ध कर लेते हैं । क्योंकि यहाँ जैसे हो सूर्य डूबता है कि तत्काल अन्धकारमय रात्रि हो जाती है। यह पृथ्वी को गोल मानने पर कयपि संगत नहीं होता है ।
उत्तर और दक्षिण प्रशांशों पर तो बराबर का हो उष:काल एवं सन्ध्या काल होना चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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