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मारविहाशतकम् ॥
वमे स्पष्ट रीते पोताना शरीर उपर कष्ट जोइ काष्टनी अंदरथी सर्पने खेंची काढ्यो हतो के जे सर्प, अंग कमवना धूणीना अग्निथी करमाइ गयुं हतुं, जे दया नरेला मुक्तिना सत्य मार्गने कहे , अने जेमना चरण इंजोनी पंक्तिए सेवेला ने एवा ते श्री पार्श्वनाथ प्रतु तमारी आपत्तिओने नाश करो. ७
विशेषार्थ-आपत्तिने नाश करवा माटे ग्रंथकार श्री पार्श्वनाथ प्रचने आशीर्वाद रूपे स्तवे जे. जे पुरुषे कोश्वार बीजा कोश्नी आपत्तिनो नाश कर्यो होय, ते पुरुष आपत्तिनो नाश करवाने समर्थ थाय ने. तेथी आ श्लोकमां श्री पार्श्वनाथ प्रजुनो कम तापसनी धूणीमां बळता एवा काष्टमाथी सर्पने नगारवानो संबंध दर्शाव्यो ने अने एवा परफुःखलंजन प्रनु बीजानी आपत्तिने दूर करी शके . ७