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कुमार विहारशतकम् ॥ ॥ ७४॥
गुणोने सांजलवाने, तेमना सौंदर्यनी प्रशंसा करवाने, तेमने नमवाने अने तेमनी पूजा करवाने इंछ एटलोबधो उत्सुक डे के, तेने माटे जेम पोताने हजार नेत्रो छे, तेवी रीते हजार कान, हजार जिह्वा, हजार मस्तक अने ह. जार हाथनी इच्छा करे छे. अर्थात् ते मनमां एवं धारे ने के, “जेम मारे हजार आंखो , तेम जो हजार कान, हजार जिभो, हजार मस्तको अने हजार हाथो होय तो वधारे सारं. तेनाथी हुं आ पार्श्वनाथ प्रतुना गुणोनुं श्रवण, तेमना सौंदर्यनी प्रशंसा अने तेमनी पूजा करी मारा आत्माने कृतार्थ करु. कहेवानो आशय एवो ने के, ते कुमारविहार चैत्यनी अंदर रहेली श्री पार्श्वनाथ प्रनुनी प्रतिमा एवी महिमावंत हती, के जेने माटे इंध आवी उत्तम स्पृहा राखतो हतो. ७०
श्राद्धाः पुण्यविधित्सया गुरुरुजो रोगापहारेच्छया