Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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रोधः स्खलनं तस्य प्रवबोधो ज्ञानं तेन प्राकुलाः ॥ १०४ ॥
नावार्थ — जे चैत्यनी अंदर केटलाएक सरल हृदय वाला लोको चंअना किरणोना जेवी द्वारना उपरना जागना मणिनी कांतिने पमदानी जांतिथी उंची कर तेमां प्रवेश करे बे ने केलाएक तेने ' रुपानां कमान वासी अटकायत कर बे' एम जाणी आकुल व्याकुल थइ द्वार उघारुवाने माटे पासे रहेला पूजार ( गोठी) ने विनवे बे. १०४
विशेषार्थ- - श्लोकमां ग्रंथकारे चांतिमान् अलंकारथी चैत्यना द्वारनी शोजा वर्णवेसी बे. चैत्यना घारना उपरना नागनी चंडना किरणोना जेवी रुपे कांति पमे बे, तेने केटलाएक जोळा दिलना लोको ' आप
दो बे' एवं धारी तेने उंचे करी अंदर प्रवेश करे बे. अने केटलाएक लोको 'आद्वानां रुपेरी कमान बंध करी अटकायत करी बे एवं जाए।
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