Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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कुमार विहारशतकम् ॥ ॥११॥
तमणिनी वेदीनी समीप रहेवाथी, मविकाना पुष्पना जेवा धोला वर्णने धारण करती हती. सुवर्णना स्तंनोनी पासे सुवर्णवर्णी थती हती अने नीलमणिनी पासे मयूरनी डोकना जेवी देखाती हती. आ प्रमाणे पंचरंगी बनती ते स्त्रीओ सर्यकांतयी अश्रुवाली थती, हस्तीओनां चित्रोथी नय पामती अ. ने पुतलीओने जो विस्मय पामती हती. आ नपरथी व्याख्यानशालानी समृद्धि पण कविए दर्शावी . १०५
यत्र श्रदातुराणामजिरभुवि परिभ्राम्यतां बिंबयोगात् । व्यालोलां वीक्षमाणो हरितमणिमयीं नेत्रवल्लीं स्फटासु । साक्षाज्ञोगींद्रशंकाप्रभवभयभवद्वेपथुव्यस्तपाणिः । पूजां पार्श्वस्य लोको विरचयति सदा पूजकानां करेण ॥१०६॥

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