Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha
View full book text
________________
वता अने दरेक तोरणे, दरेक शिलाए अने दरेक नत्सवे आश्चर्य सहित र. हेता एवा परदेशी मीजमान अने त्यांना वतननीवच्चे कोइ जातनो नेद विधा. न पुरुषोना जाणवामां आवतो नहोतो. १००
विशेषार्थ-ते चैत्यनी अंदर बाहेरथी आवेलो परदेशी अने त्यांनो वतनी-ए बनेनी वच्चे कोइ जातनो तफावत जोवामां आवतो नहोतो; कारण के त्यांना हमेशना वतननीने ते चैत्यने जोइ जेवं आश्चर्य थतुं, तेवुज परदेशी नवा माणसने पण थतुं हतुं. हमेशां त्यां रहेना दिव्य अने विचित्र रत्नोथी सुंदर एवा काशो अते मंझपो जो विदेशी अने वतनी बने सरखी रीते मस्तक धुणावता हता. वली ते चैत्यना दरेक तोरणे, दरेक मणिमय शिखाए अने दरेक नत्सवे तेत्रो बने सरखी रीते आश्चर्य पामता हता. ते उपरथी विज्ञान पुरुषो पण विदेशी अने वतनीनो तफावत जाणी

Page Navigation
1 ... 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254