Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 225
________________ वर्षारावे, वीणाना शब्दोनो द्वेष करनार तेमज निर्दय तामनश्री जयंकर एवो वाजिनो शब्द जेमनी कडियोने ढांकी देतो तो अने परस्पर शरीरना गाढ दबाणने बइने जेमनी हाथनी बधी क्रिया हलाइ गइ हती; एवा यात्राने विषे वेला प्राणीओना बधा कार्योंनो उपदेश नेत्रोना नचावा थाय बे. १०३ विशेषार्य - ते कुमारविहार चैत्यनी अंदर वाजित्रोनो ध्वनि एटलो मोटो तो हतो के, जे ध्वनि दिव्य गायनना अवधि रूप ने माधुर्य वर्षनारा वे तथा वीणाना ध्वनिओनो द्वेष करतो हतो अर्थात् तेमने दबावी देतो हतो. ते ध्वनिने लइने त्यां यात्राने माटे आवेला लोकोना कान बेहेरा जता तेी ते एक बीजाना शब्दने सांजळी शकता नहता. वली तेमना शरीर परस्पर जमां आवताने तेथी तेमना हाथ बंधाइ जता हता.

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