Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 221
________________ समूह नित्य, विचित्रवर्णोथी सुंदर, नेत्रोने दर्शनीय स्थितिवाना अने चपन करे . १०१ विशेषार्थ-आ काव्ययी ग्रंथकार चैत्यना बाहेर अने अंदरना मंझपोने विष बांधेना चंदरवान चमत्कारी रीते वर्णन करे . प्रनुनी प्रतिमाने विषे पंचवी कांति रदेसी , एटट्ने प्रजुना मस्तकपर रहेना शेषनागनी नीलकांति , शेषनागनी फणाना मणिनी राती कांति , प्रजुना अंगनी श्वेत कांति ने अने प्रतुए धारण करेता सुवर्णना बाजुबंधनी पीली कांति ने -ए पंचवी कांतिने साने त्यां बांधेवा चंदरवाओ पण पंचवर्णी थवाथी नेत्रोने जोवा सांयक घने बे, ते साथे ते चपन देखाय . आयी ग्रंथकारे प्रनुनी प्रतिमाना सौंदर्यतुं दिग्दर्शन कराव्यु . नील अने श्याम एक गपाय , तेथी तेने जिन्न गणवाथी पंचवर्ण थाय रे. १०१

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