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चर्चा पत्र.
चनसारोद्धारका पाठ - और उसका अर्थ-छपवा दिया है, -आप लोगोने देखा होगा. अगर शक हो तो - प्रवचनसारोद्धार शास्त्र देखकर अपना शक - रफा करो, शांतिविजयजी उनही सबबोसे चमडेके सपाट पहनते है, जिस जैनमुनिके पांव के तलवो में दर्द हो, पांवके तलवे फट जाते हो, उस हालत में चमडेके सपाट पहनना हुकम है, -पांव के तलवो दर्द होना - या - फटजाना, - यहबात अटवीकेही तालुक नही, चाहे अटवीहो - या - शहरहो - उपरबतलाये हुवे - सववोसे जैनमुनि चमडेकेसपाट पहन सकते है, शांतिविजयजी की दिइहुइदलिल इसकदर मजबूत हैकि - किसीहालत में नही सकती, प्रवचनसारोद्धारशास्त्रकों सवालकर्त्ता मानते है - या नहीं ? अगरमानते है - तोइसबातकों मंजुरकरे, अगर नही मानते है - तो बदलेका पाठदेकर मजकुरदलिलको तोडे, मवचनसारोद्धारशास्त्रकों माननेमें सवालकर्त्ता - इनकार नहीकरसकते, क्योंकि - उनोने अपनेहीलेखमें जैनमुनिकों अप्रशस्तभाषा- नही बोलने के बारेमें उक्तशास्त्रका पाठदिया है, -
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१४ - आगे दलिचंद सुखराज बयानकरते है, - प्रवचनसारोद्धारकी बातों शांतिविजयजी अपने मतलबकेलिये मंजुररखते है, मगर शांतिविजयजीकोतों तीर्थकरोके वचनोशिवाय जैनाचार्यों के वचनोंपर पुरा विश्वास भी नही -
( जवाब.) बेशक! मुजेसे जैनाचार्यों के वचनों पर पुरा विस्वा - सनही - जो खिलाफहुकम तीर्थकरोंके बयानफरमागयेहो, और यह बातठी कभी है कि - जैनमें तीर्थकरदेवोसें ज्ञानमें कोइबडानही, - इसबातको कौन जैन गलत कह सकेगा ?-में- अपनेमतलबको नही लेता हूं, -तीकरोके वचनोकों लेता हूं, प्रवचनसारोद्धारकेवचनपर सवालकर्त्ताको शकहो - तो - दुसरेजैनशास्त्रकापाठ देकर उसको - रदकरे. में - उसपर जवाच दुंगा, -