Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin
View full book text
________________
aumannum
२८ .......... चर्चापत्र. . द्यान-धनखंड-या-पहाडोकी गुफामें रहतेथे,-सवालकर्ता-बतलावे, आजकल-गावमे-और शहरोमे रहनेका रवाजदिखाइदेताहै, इसकी क्यावजहहै, ? अगर कहाजाय पहले जैसा-बलपराक्रम-रहा नहीं, इसलिये देशकालानुसार-चलनापडताहै,-तो-फिर सोचो ! देशकालका सहारालेनापडा-या-नही ?-जमाने. पेस्तरके जैनमुनिदिवसके तीसरेमहर भिक्षाकों जातेथे, आजकल दिवसके पहलेदुसरे प्रहरमें जानेकारवाज दिखाइदेताहै,-जैनशास्त्रोमें लिखाहै, जब उपवासव्रत करना-तो-पहलेरौज एकाशनाकरना, और पारनेकेरौजभी एकाशना करनाचाहिये, औसीप्रवर्ती नजर नहींआती, कहिये ! इसका क्यासबबहै, ?
४०-फिर दलिचंद सुखराज इसदलिलकों पेंशकरते है, व्याख्यानके विना बोलतेसमय मुखवत्रिकाकोंआप हाथमें नहीरखते है, इसका क्यासबुतहै, ?
(जवाब.) इसका यह सबुतहैकि,-भाषावर्गणाके पुद्गल चारस्पशी है, और वायुकायके जीवोका शरीर आठस्पर्शी होताहै, चारस्पशी पुद्गल-वायुकायकेजीवोंकी हिंसानही करसकते,
४१-आगे दलिचंद सुखराज इसमजमूनकों पेंशकरते है, जब शहरधुलियेसे शांतिविजयजी बंबइ गयेथे, जहांजैनोके हजारांघरहै, बहुतसे उपाश्रय और धर्मशाला मौजूदहै, उनकों छोडकर-न्यू-सरदार-आश्रममें ठेरनेका क्याकारण ! बंबइमे वहाँका श्रावकसंघ आपकास्वागत करनेको क्यानहीआया ?
(जवाब.) बंबइका श्रावकसंघ मेरास्वागतकरनेकों इसलिये नही आयाकि-मेने उनकों खबरनहीदिइथी, और में आंखकीबीमारीकेवारेमें डाक्तरकीराय पुछनेकों और चश्मोकी तलाशीकलिये बंबइगया

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60