Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 34
________________ ३२ चर्चापत्र. यंति दो - गोयरकाला, इसका माइनायहहुवा कि - बेलेवेले तप करनेवाले जैनमुनि दोदकेगोचरीजावे, सोभी- पहले दुसरे प्रहर में जावे yarsaaraमें कहां लिखा है, ? सबजैनमुनियाके लिये -तो- दिवस के तीसरे प्रहरमें गौचरीजावे, असा उतराध्ययन सूत्रका फरमान है, शांतिविजयजी घरभेदी है, कल्पसूत्रकी साधुसमाचारीका पाठ उनसे छुपाहुवा - नहीं है, उत्सर्गमार्ग में - जैनमुनिकों दिनमें एकही दफे आहार खाना कहा, जिसको शक हो -दशवैकालिक मूत्रदेखे, ४६ - मेने - जो - तेइससवालो के जवाब में लिखाथा, एक-मैथुनभावकों छोड़कर दूसरे जितनेकार्य है, जैनमुनि उनमें फायदाधर्मका देखे - वैसाकरे, यह बहुतठीक लिखा था, इसपर सवालकर्त्ता लिखते है, जैनशास्त्रो में - तो - पांचोमहात्र तोकी रक्षा करना जैनसाधुका काम है, ( जवाब . ) अगर जैसा है, तो - जैनशास्त्रों में मैथुनव्रत केलिये एकांत निषेध क्यों कहा? इसका जवाब देसको तो दो, इसद लिलमें तेहरीर करने की जगह नहीं, फिर कोइक्या बारीकी निकाल सकेगा, ?दरअसल ! समजने की बातभी यही है, - ४७ - आगे दलिचंद सुखराज वयानकरते है, हमनेनो के अंत लिखा था, - शांतिविजयजी सवेजैनधर्म केरागी और सत्यवक्ता है, -तोहमारेपुछे प्रश्नो के उत्तर निष्कपटहोकर सत्यदेदेवेगे, ( जवाब . ) मेने पेस्तर तुमारे तेइस- सवालो के जवाब सत्यसत्यदेदिये है, और अबभी देरहा हूं. मेरेदफतर में माकुलजव (बोकी कमी नहीं सत्यकभी छिपतानही, दुनिया में कहलावत है, - साचक आंच नही, ४८ - फिर दलिचंद मुखराज तेहरीरकरते है -में- समजताथा, सत्य कहेगें, परंतु सत्यको छिपाकर व्यर्थकुतर्क किये है,—

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