Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 46
________________ ४४ . चर्चापत्र. जोजो साधु-साधवा सजीव-अपनेअपमासमें विहार न सहजनही, इन्साफ कहताहै, दक्षिणनिवासीकों तो-उत्सर्गमार्गपर खयालकरना चाहिये, कारणपडनेपरभी कमजोर मार्गपरं क्योजानाचाहिये, अगरकहाजाय कारणपडनेपर तो-अपवादमार्ग सेवन करना चाहिये, तोफिर शांतिविजयजी और क्या कहते है, इसबातपर शां. तिविजयजीको कोइक्या ठपका देसकते है ? ५-धर्मकाममें दुसरोका कमजोर बरतावदेखकर अपनी धर्मश्रद्धाकमजोर नहीकरना चाहिये, जिसश्रावककी धर्मश्रद्धा दुसरोका शिथिल बरतावदेखकर कमजोर होगइ-वो-श्रावकही क्या ? मेंदुसरोका कमजोर बरतावदेखकर अपनीधर्मश्रद्धामें कचापन नही लाता, जोजो साधु-साधवी-श्रावक-श्राविका-अपनीधर्मश्रद्धामें पावंदरहते है, उनकी तारीफहै सबजीव-अपनेअपने पूर्वसंचितकर्मके अनुसार बरताव करसकते है, शांतिविजयजी चौमासमें विहार नहीं करते, अगर उसशहरमें-बीमारीचलपडे-तो-करतेभी है,-शांतिविजयजी दखनहैदराबाद-सिकंदराबाद-और-तीर्थकुल्पाकजी तर्फविचरचुके है, तीर्थ कुल्पाकजीके मंदिरका जीर्णोद्धार उनके उपदेशसे हुवाहै, कोइ औसानही कहसकताकि-उनोने जैनश्वेतांबरधर्मकी कमजोरी करवताइहो,-लेखक तलाशकरे, [दक्षिण निवासीके लेखकी पूर्णता,-] ६-अखीरमें दक्षिणनिवासी इसमजमूनकों पेंशकरते है, छेवटे सेवककी नम्रप्रार्थना एछेके-आनेमाटे श्रीसंघ विचारकरशे, अने दि. वसे दिवसे मूर्तिपूजकोनी श्रद्धा हठावनारा आवा साध्वाभासो सामा चांपता इलाजलेशे, .. (जवाब.) चाहे जितनेइलाज श्रीसंघ-लेवे, शांतिविजयजी

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