Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin
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निर्णय-चर्चापत्र. - ३-कलम-तीसरी,-जैनशास्त्रोमेंलिखाहै,-जैनमुनिको-उत्सर्ग'मार्गमें-उद्यान-बनखंड-बागवगिचे-या-पहाडोकी गुफामें रहना चाहिये, इसपरकोइ-साकहेकि-आजकलके मनुष्योकी औसीताकात नहीरही, इसलिये इरादे संयम और देहरक्षाके गांवनगर रहनेका शिथिलमार्ग इख्तियारकरनापडा,-तो-फिर सबुतहुवा,-इरादेसंयम
और देहरक्षाके अपवादमार्गका सहारा लेनापडा,__४-कलम-चौथी, जैनशास्त्र उत्तराध्ययनमें लिखाहै, जैनमुनिकों
और जैनसाधवीको दिवसके तीसरेमहरमें गौचरीजानाचाहिये,-पहले प्रहरमें ध्यानकरे, दुसरेपहरमें स्वाध्याय-और-तीसरेपहरमें भिक्षाकों जावे, अगरकोइ इसदलिलकों पेंशकरेकि-आजकल तीसरेप्रहरगौचरीकों जायगें-तो-भिक्षामिलना दुसवारहोगा, इसलिये इरादेदहरक्षाके दिवसके पहले हरमें चाह-दुधकी गवेषणा करनापडती है, और दिवसकेदश-ग्यारहबजे गौचरीकों जानापडताहै,-सबुतहुवा,-इरादेदेहरक्षाके असावरतावकरना पडताहै,--जो-जो-जैनमुनि--उत्कृष्ट क्रियावान् बननाचाहै-दिवसके तिसरेपहरगौचरी-जावे, और-जोकुछ निरस-आहारमिले, उसपर संतोषकरे,- ५-कलम-पांचमी,-जैनशास्त्र-उत्तराध्ययनमें लिखाहै-जैनमुनि और-जैनसाधवी-क्षुधा-तृषावगेरा बाइसपरिसहकों सहनकरे, खानपानकीचीज-न-मिलेतो-उसपरिसहकों सहन करे, और अपनेअंतरायकर्मका उदयसमजे,रास्तचलतेवख्त धूपठंड और कंकरपथरकी तकलीफपडेतो सहनकरे, अगरकोइ इसदलिलकों पेंशकरेकि विहारके वख्त कंकर-पथर-या-धूपठंडकी तकलीफ सहन-न-होसके-तो-इरादे देहरक्षाके-कतानके सफेद-मौजे पहनेतो क्याहर्ज है-? पांचमेआरके 'मनुष्य-चतुर्थआरकके मनुष्योकी बराबरी नहीकरसकते, इसलिये

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