Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 59
________________ [दोहा,- ] पानी वाढ्यो नाव- घरमे वाढ्यो दाम, दोनों हाथ उलेचिये - यही सयानो काम, जो जामे निशदिनवसे- सो तामे परवीन, गज सरितामे वहेचले- उलट चलतहैमीन, समकीतवंता प्राणिया करेकुटुंब परिपाल, अंतर्घट न्यारा रहे धाव खिलावे वाल. जिनवानीके ज्ञानसे- सुजत लोकालोक, या वानी मस्तक धरो सदा देतेहै ढौक. मखी वेठी सहतपें पंख लिये लिपटाय, • हाथ मले और सीरधुने - लालचबुरी बलाय, नशा न नरको चाहिये -द्रव्य बुद्धि हरलेत, एक नशेके कारणे - सब जन ताली देत, सीर मुंडाये तीन गुण-सीरकी मिटगइखाज, खानेको रोटी मीले- लोक कहे महाराज. को-मुख-को- दुखदेत है - देतकर्म झकझोर, उरझत-मुरझत आपही - धजा पवनके जोर. १०. 1 1 अरे ! बिनोले बाबरे - मनके बडे जोधीर, आपउघाडे होरहे - परको ढकत शरीर. २.१ ४. ७. ८. ११.

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