Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 57
________________ ५५ निर्णय-चर्चापत्र, जैनमुनि-उसश्रावकको-कहे-यह-चीजहमकों कल्पेनही, इन्साफपुछताहै फिर उसकामकी सूचनादेनाकैसे कल्पता-था, १२-कलमबारहमी-अगरकोइ जैनमुनि-आचार्य--उपाध्याय गणी-प्रवर्तक वगेरापदवीके धारकबने-तो-पहले उनको यह सौच लेनाचहियेकि-मेने-उसपदवीके गुणहासिलकिये है-या-नही ? अकेलीतपस्याकरके योगवहन करलिया-और-ज्ञानहासिल कियानही. तो-जैसीपदवीसे क्याफायदा? ज्ञान-सर्वआराधककहा,-और-क्रिया देशआराधककही. भगर-चोभी-श्रद्धासहितहो-तो, १३-कलम-तेरहमी-अगरकोइ--जैनयतिनीहो--तो--उनकोभी-पाणातिपात-मृषावाद-अदत्तादान-मैथुन--और-परिग्रह--येपांचमहाव्रतपालन-करनाचाहिये, और दशविधयतिधर्म--आराधन करनाचाहिये,-जैनशास्त्रोमे पाठहै-जो-शख्श-यांचइंद्रियोको जीते उसकानाम-यतिहै,-जैनके-यतिनामधरानेवालोकों तीर्थकरगणधराके दरखारसे छुट नहीमिली हैकि-तुम-खिलाफजैनशास्त्र के बरतावकरो, यतिजनोमेभी-जो-जैनाचार्यकी पदवीकेवारकहो-उनकों आचार्यपदके (३६) गुण हासिलकरना चाहिये, कचापानी नहीपीना-हरीवनास्पति नहीखाना, नवकल्पी विहारकरना, शुभह-शाम-दोनोवख्त प्रतिक्रमणकरना, और रजोहरण-मुखवत्रिका हमेशां पासरखनातवनैनाचार्य-होसकते है, १४-कलम-चौदहमी--जैनशास्त्रोमे लिखा है--हरेकश्रावकश्राविकाको श्रावकधर्मके (२१) गुण-और (१२) व्रत-हासिलकरना चाहिये, विनाश्रद्धाके-केशरका तिलक लगायाजाय-या-सामायिकप्रतिक्रमण-कियाजाय-तो-इससे भावश्रावक नहीकहेजासकते,

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