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चर्चा पत्र.
जाहिर हो चुके है, इनमे से किताब जैनतीर्थगाइड - त्रिस्तुतिपरामर्शऔर न्यायरत्रदर्पण-ये- थोडीनकल सीलकमें रही है, शिवाय इसके सब किताबे बीकर, किताब - मानवधर्मसंहिता - जिसकी किंम्मत दोरुपयेथी, मगर पनपनरांरुपये देकर ग्राहकोंने खरीदलिड, और जितनीछपीथी तमाम बीकगड, कोइमहिना जैसा नहीजाता जिसमें इसकी मांग मेरेपास - न - आतीहो, जैनपत्र में कइवसों से मेरेलेख छपते है, जब में दुसरो के सवालोका जवाबदेताहुं-तो- मेरेपर किये हुवे सवालों का जवाब क्यों -- ढुंगा, - व - सबब कमफुरसत के चाहे कोई वख्त देरहोजाय, मगर जवाब जरुरदेताहूं, जैसा खयाल कोई-नकरेकि - जवाब-न- देयगें,
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[ अखीरभाग - चर्चापत्र - ]
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जमानेहालमें अगरकोइ जैन श्वेतांबरमुनि-अपनेदिलमें असाखयालकरेकी - हम - उत्कृष्ट - क्रियावान् और पूर्णसंयमी पंचमहाव्रतधारी मुनि है, तो उनकों मुनासिब है, - नवकल्पी विहारकरे, यानी - मोशिमे शर्द - या - गर्म दिनो में एकमहिने से ज्यादा-न-ठहरे, और मोशिमे वारीशके दिनो में चारमहिनेसे ज्यादा - एक गांवनगरमें-- रहे, वि द्यापढनेके लियेभी किसीगांवमें - शहरमें - या - पाठशाला - एकमहिनेसे - या - चौमासे के चारमहिनोसे ज्यादा न रहे, क्योंकि चारित्रमे शिथिलता होगी, अगर कहाजाय इरादे विद्यापढने के रहे तो क्या हर्ज है ? जवाब में मालुम हो, -विद्यापढने के लियेभी चारित्र में शिथि लता क्यौंलाना ? मुनासिब है, - विद्याभी पढते रहना, और विहारभी करतेरहना, अगरकहाजाय इरादा विद्यापढने का है, विद्यापढेगें तो आगे ज्ञानका फायदा होगा, तो जवाब में मालुम हो, -रैलविहारमें भी इरादा धर्मोपदेशका है, धर्मका उपदेश देयगे, तो आगे धर्मका फायदा
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