Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 43
________________ दक्षिणनिवासीके लेखकाजवाब. [दक्षिणनिवासीके लेखका जवाब,-] (जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न महाराज-शांतिविजयजी तर्फसे,) सन (१९१५) अगष्टके जैनशासन अखबारमें एक दक्षिणनिवासीके नामसेजिसने मेरेबारेमें लेखलिखाहै, उसका जवाबदेताहुँ, सुनिये! १-दक्षिणनिवासी अपनेलेखकी शुरुआतमे लिखते है शांतिविजयजी प्रतिपादनकरेछे, रैलमां बेसवं, सुगंधीतेल लगाववं, रेशमीरुमाल राखवो ए सर्ववात शास्त्रमा लखीछे, __(जवाब.) जैसे शांतिविजयजी प्रतिपादन करते है, इरादेधर्मके जैनमुनिको रैलमेंबेठना, और मुल्क-ब-मुल्कमे जिज्ञासुलोको धर्मोपदेशदेना ठीकहै, वैसे जैनशास्त्रभी प्रतिपादन करते है, इरादेधर्मके जैनमुनिकों नावमेंबेठना, हरेकगांव-नगरमें विहारकरना और जिज्ञासुलोगोकों धर्मसुनाना,-नावकेचलनेसे पानीके जीवोकी हिंसाहोती है, मगर इरादेधर्मके भावहिंसानही, वेसे इरादेधर्मके जैनमुनिकों रैलमेंवेठनेसे भावहिंसानही, जैसेनाव एकतरहका वाहनहै, रैलभी एक तरहका वाहनहै, और-वो-एकशख्शकेलिये नहीचलती, उसके टाइमपर आतीजाती है, जैनमुनिको कचेपानीका स्पर्शकरना मनाहै, मगर इरादेधर्मके छोटीनदीमें पांवदेकर उतरना हुकमहै, कहिये ! इरादेधमंकी सडक कैसीमजबूतहै, जिसको-तीर्थकर-गणधरोने मंजुररखी है, हरीवनास्पतिका स्पर्शकरना जैनमुनिकों मनाहै, मगर विहारकरते वख्त-किसी खाडेमें गिरजाय तो इरादेदेहरक्षाके लतावेलडीकों पकडकर उपर आजानाहुकमहै,-अब सुगंधीतेल के बारेमें जवाबमुनिये ! जैनशास्त्रोमें बयानहै, रोगादिकारणसे जैनमुनि-शतपाक-सहस्रपाक-लक्षपाक वगेरा तैलइस्तिमाल करे, खयालकरो, लक्षपाकतैल

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