Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin
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दलिचंद मुखराजके लेखकाजवाव. २१ खानेकीमनाहै, मगरकभीकभी खानेकीमनानही, शांतिविजयजी घरके भेदी है, कल्पसूत्रकापाठ हरसाल पर्युषणोकेदिनोंमें बांचते है, उनसे क्याछिपाहै ? .. .... ........ ......
३१-आगे दलिचंद सुखराज लिखते है, देवपुरजीनके बगीचेमें खुर्शीवीछाकरवेठे-इसमें वनास्पतिकासंघटन-हुवा-या-नही ? ___(जवाब.) देवपुरजीनके बगीचे खुर्शीवनास्पतिपर नहीवीछीथी, अलगवीछीथी, इसलियेसंघटन नहींहुवाया,-यहजिक्र संवत् (१९७२) के-प्रथमवैशाखसुदी सप्तमीफेरौजकाहै, जबकि-में-शहर धुलियेसे रवानाहोकर सीरपुरकों जाताथा,-शहरधुलियेके श्रावक-श्राविका भयबेंडबाजावगेरा जुलुसके मुजकों देवपुरजीनके बगीचेतक पहुचानेकों आयेथे. वहां-मेने श्रावकोकोंधर्मोपदेश सुनायाथा,-ऊसवख्त-एकशख्शने खुर्शीलाकर मेरेपासरखीथी, और उसपरमेरा बेठनाहुवाथा, जैनमुनिकों खुर्शीपरबेठनेसें ऊनकाचारित्रधर्भ नहीचलाजाता, जैसैपाट पाटले-और व्याख्यानकातख्त वगेरालकडेके बनेहुवेहोतेहै, वैसे-खुशीभीलकडेकी बनीहुइहोतीहै,
३२-ज्योतिषशास्त्र एक दीव्यज्ञानहै, और उर्दू जबानमें उसकों नजुम कहते है,तीर्थकर-गणधरोंने-जैनागम-चंद्रप्रज्ञप्ति-सूर्यप्रज्ञप्ति-वगेरामें नजुमका बयानफरमाया, महानिशीथसूत्रमें महाविद्याओ बतलाइ, नजुम और मंत्रशास्त्रका जानना अगर पापहोता, तो तीर्थकरगणधर जैनशास्त्रोमें उसकाबयान क्यों फरमाते ? जैनाचार्य भद्रबाहुस्वामीने उपसर्गहर-तथा-ग्रहशांतिस्तोत्र बनाये, जैनाचार्य-सिद्धसेन-दिवाकरजीने कल्याणमंदिर और मानतुंगसूरिजीने भक्तामरस्तोत्र-बनाये, और उसमें बीजमंत्र दर्जकिये है, फर्जकरो ! अगर मंत्रशास्त्रका जानना मुनासिब होतातो-असा क्योंकरते ? इनके बनानेवाले जै

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