Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin
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२२
चोपत्र.
नाचार्य पंचमहाव्रत. धारीथे-या-कौन ? अगरकोइ जैनमुनि. इरादे : धर्मके किसीश्रावककों जैनस्तोत्रके आराधनकी विधि बतलावे तो : कोइहर्जनही, शांतिविजयजी इसीतरह जैनस्तोत्रकी विधि योग्यश्राचककों बतलाते है, और वे योग्यश्रावक धर्मकाममें द्रव्य खर्चकरते है, शांतिविजयजीके शाथ-पंडित-या-लेखक-वगेरा-एकदो-आदमी हमेशां वनेरहते है, अगर कोइ श्रावक शांतिविजयजीके शाथ चलनेवाले नोकरकों रास्तेके खर्चकेलिये कुछद्रव्य देवे, तो उस श्रावककों पुन्यहोनेका सबबहै, इसमे शांतिविजयजीको परिग्रह क्या लगा?
ज्योतिषशास्त्र के बारेमें बयान सुनिये,-ज्योतिषशास्त्र सचाहै, मगर उसका जाननेवाला सचाहोनाचाहिये. अगर ज्योतिषशास्त्र सचा-न-होता-तो-ज्योतिषी लोग-जमीनपर बेठकर आस्मानके सितारोका-हाल और चंद्रसूर्यका ग्रहणहोना कैसे बतला सकते, ? ज्योतिषशास्त्रकी सचाइका यहीतो-नमुनाहै, कितनेक वसैसे-वजरीये नजुमके निकालाहुवा हरसालका बरतारा मेरी तर्फसे जैन अखबारमें छपताहै,-आपलोगोने पढाहोगा, तारिख-२३-जुलाइसन-१९१६के जैनअखबारमें छपाथाकि-जैनधर्मका बरतारा सत्यहुवा, जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न-महाराज शांतिविजयजीसाहेबने जैनपत्रमेसाल (१९७३) का-हाल कैसाहोगा ? उसपर एकबरतारेका दियाहुवावयान तारिख (११) जुन-सन. (१९१६) के-अंकमें छपाहै, उसमें लिखाहै-वारीशका योग आषाढसुदी छठ-और-सातमके रौज होगा, उसरौज वारीश बहुत अछीहुइ, और एकमास हुवा वरसाद नहीथा, बीज और तरु-सुकने लगेथे, वारीशहोनेसे बहुतफायदा हुवा, आषाढसुदी पुनमऔर-हिंदी श्रावणवदी एकम-गुजराती आषाढवदी एकमके रौज .

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