Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 25
________________ दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. २३ वारीशहोगी, जैसा बरतारेमें लिखाथा, यहयोगभी सत्यहुवा, और वारीश बहुतहुइ,-देखिये-संवत् ( १९७३ ) के-वरतारेके बारेमेंमजकुर बयान छपाथा, आमलोगोने पढाहोगा, ३३-आगे दलिचंद सुखराज बयानकरते है, करना-कराना कुछ नही, नाहक ! जैनमजाकों तेजीमंदीका आडंबरबतलाना कारआमद नही होसक्ता,___ (जवाब.) शांतिविजयजी किसीकों कहनेनहीजातेकि-आपलोग मुजे नजुमकेबारेमें पुछनेआओ,-हरसाल-ब-जरीयेनजुमकेमेरा-बरतारा जनअखबारोमें छपताहै, कभीदेरहोजाती है-तो-कइमहाशय बजरीयेचीठीके पुछतेहैकि-आपकीतर्फसे निकालाहुवा बरतारा इससाल अबतक क्यों नहींछपा ? विनाइल्मपढे किसीका आडंबर नहीचलता, आडंबर भी जमीचलताहै, अगरऊसइल्मको पढेहो, (बयान पुस्तक छपवाने के बारेमे.) ३४-फिर दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है, पुस्तक छपवानेके लिये कुछ सारे पैसे नहीदिएजाते, कुछहिस्सा दियाजाताहै, और आपतो-कुल्लरकमलेलेतेहो, फिरवसौंतक-वे-पुस्तके प्रगटहोतीनही,___ (जवाब.) कौनकहसक्तेहै, ? पुस्तकवौंतक प्रगट नहींहोती ? चाहेदेरसे प्रकटहो-या-जल्दीसेहो, मगर-जो-किताब मेरीबनाइहुइ छपनाशुरुहुइ-वो-छपतीजरुरहै,-चाहेकोइ उसकाइम्तिहानकरकेदेखे, पेस्तरके जैनमुनि-हस्तलिखितंपुस्तकसे जैनसमुदायकों फायदा पहुचातेथे, जमानेहालमें छपेहुवेपुस्तकोसे कामलियाजाताहै,-द्रव्यका खर्च-तो-दोंनोकामकेलिये होताहै,-पुस्तकबनाना-या-छपवाना-सहजबात नही, जो आजबनाइ-और-कलछपगइ, पुस्तकछपवानेकेलिये

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