Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 26
________________ २४ चर्चा पत्र. रकम - श्रावकोसे अवललेने के सबब-तीन है, - पहले तो धर्मकाममें ढीलकर नाठीकनही, दुसरसिबब यह है कि - प्रेसवालोंकों एडवान्स भेजना पडता है, तीसरासबब - एक ग्रंथवनानेकेलिये अनेकग्रंथम गवाने पडते है, और सवसाधनमिलानापडते है, इसी सबब सबरकम पेस्तरलिइजाती है, और वो रकमशाथमें रहनेवाले कार्यकर्त्ता केपास रखीजाती है, और उसका हिसाब - पुस्तक छपने के बाद देखा जाता है, - जैनोके धार्मिक काय देके लिये ग्रंथबनाकर छपवाना - या - जैनअखबारोमें धर्मकेबारेमें लेख लिखना, जैनमुनिका फर्ज है, - ३५ - आगे दलिचंद सुखराज इस दलिलकों पेंशकरते है- दखन - हैदराबाद के श्रावकोंसे - संवत् (१९६५) में - रुपये (१००) लियेथेवो - पुस्तक छपवाकर ऊनकोनही भेजी गई, वो रकम कहाँ है ? ( जवाब . ) जो - पुस्तक दखन - हैदराबादकेश्रावक संवत् (१९६५) की - सालमें छपवानाचाहते थे, और उसके लिये ऊनोने - जो - (१००) रुपये दियेथे, वो पुस्तक ऊतनेरुपयोंसें छपनहीसक्तीथी; इसलिये संवत् ( १९६६ ) में जब मेराजाना दुसरीदफे तीर्थकुलपाकजी और दखन - हैदरावादतर्फ हुवा - तब वह किश्राव कोकों कहा गया कि - उतने रुपयो में - बो- पुस्तक नहीछपसक्ती, ऊनानेकहा, हमनेज्ञान पुस्तकके - निमित्त-सो- रुपयेदिये है, दुसरेज्ञानपुस्तकेके काम में लगा देना, इसलिये वो रकमदुसरे - ज्ञानपुस्तक के काम में लगादिइगइ है, -- (दवान वचन से शासन देना.) ३६ - फिर दलिचंद सुखराज इसमजमूनको पेंशकरते है, सख्त जवान और अश्लीलजवानका जमीनआस्मानका अंतर है - और - प्रवचन सारोद्धार पृष्ट (४३६) पर - मुनिकों - छह प्रकारकी अप्रशस्तभापा बोलनेका मना-लिखा है. -

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