Book Title: Kitab Charcha Patra
Author(s): Shantivijay
Publisher: Dolatram Khubchand Sakin

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Page 18
________________ चर्चापन. छका अर्थचाहे व्याकरणके कानुनसे करो, या भावार्थसे करो, मात नहीआय-जो-उपर लिखीगइहै, __२३-आगे दलिचंद सुखराज इसमजमूनको पेंशकरते है, धर्मरुचिमुनिस्वयं शांतिविजयजीकी तरह किरायादेकर गंगापार नहीं ऊतस्थे, - (जवाब.) मेने मेरेलेखमें औसाकही लिखाहैकि-धर्मरुचिमुनिकिराया देकर गंगापार उतरे, आर लिखाहै, तो-कोइ बतलावे, शांतिविजयजी-सकरके वख्त जबजब नावमें-या-रैलमें बेठते है, किराया शाथमे रहनेवाले आदमी देते है, और गांवगांवके श्रावकलोग अपनीभक्तिसे-खचंदेकर आदमी शाथभेजते है, (बीचबयान तीर्थकुल्पाकजी और उसका जीर्णोद्धार.) २४-फिर दलिचंद सुखराज वयान करते है, जो तीर्थ कुल्पाकजीकेलिये लिखा गया है,-चो-विल्कुल गलतबात है, कुल्पाकनीके जीर्णोद्धारके बारेमें वहां के श्रावकोका विचार शांतिविजयजीके जाने के पहलेसेही-होरहाथा, और प्रतिष्ठाभी विकानेरनिवासी-ऊपाध्यायश्री शमलालजी गगीजीके हाथसे हुइथी, ___ (जवाब.) तीर्थ-कुल्पाकजीके मंदिरकी प्रतिष्टा दुसरीदफे हुई मही, जो पहले की है, वही कायमहै, अगर मेरेजानेसे पहलेही जीर्णोद्धारकराने का विचार श्रावकोकाया, को-ओरेजाबेसे पहले जीर्णोद्धारकाचंदाकरके कामशुरु क्यानही कियाथा? तीर्थकुल्फाजीके मंदिरका जीर्णोद्धार संवत् (१९६५) में-मेरे ऊपदेशसेहुवाहै, उससाल मेराचौमासादखनहैदराबादमेंहुवाथा, मेने दखनहैदराबादके जैनश्वेतांबर श्रावकोको व्याख्यानसभा ऊपदेशदिवाकि-आफ्लोग-मुल्कमारवाडसें यहां व्यापारकेलिए आए, दौलत पैदाकिद और नजदीककै जैनतीका

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