Book Title: Kavi Kaustubh Author(s): Rajasthan Puratan Granthmala Publisher: Rajasthan Puratan Granthmala View full book textPage 5
________________ [ २ ] अत्र छन्दसि मद्विरचितछन्दो रत्नावल्याम् यदि द्वितीयं च चतुर्थ पञ्चमं तथाष्टमं तद्दशमं भवेद्गुरुः । यदाक्षरं द्वादशकं महीपते गिरन्ति वंशस्थमनल्पधीषणाः ॥ ६॥ यदा द्वितीयं च तथा चतुर्थं सखे भवेत् पञ्चमकं च दीर्घम् । तथाष्टमं वा दशमं तथान्त्यमुपेन्द्रवज्रां नृप तां गिरन्ति ॥ १० ॥ इति वृत्तद्वये व्याहृते सति वंशस्थे उपेन्द्रवज्राचरणप्रवेश भिन्नत्वाच्छन्दोभ्रष्टदोषः । अन्त में स्वर्गीय डा० पी. के. गोडे को हार्दिक धन्यवाद अर्पित करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ जिन्होंने इस प्रप्रकाशित ग्रन्थ पर प्रकाश डालकर काव्यशास्त्र के क्षेत्र में इस नये पुष्प का उद्घाटन किया । वसन्त पञ्चमी, सं० २०२४ जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only फतहसिंह www.jainelibrary.orgPage Navigation
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