Book Title: Karmgranth 01 02 03 Author(s): Devendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 9
________________ जिस प्रकार नारियल द्वीप के मनुष्य को अन्न पर न प्रीति-राग होता है, न अप्रीति - द्वेष होता है, उसी प्रकार मिश्र मोहनीय के उदयवाले जीव को जिनप्ररूपित धर्म पर न राग (प्रीति) भाव होता है, न द्वेष (अप्रीति) भाव होता है । मिश्र मोहनीय का काल अन्तर्मुहूर्त का होता है। I अरिहंत - जिन प्रतिपादित धर्म (जैन धर्म) से विपरीत श्रद्धा करवाने वाला मिथ्यात्व मोहनीय है ॥ १६॥ सोलस कसाय नव नोकसाय, दुविहं चरित्तमोहणीअं, । अणअपच्चक्खाणा, पच्चक्खाणा य संजलणा ॥ १७ ॥ चारित्र मोहनीय दो प्रकार के हैं कषाय और नोकषाय । कषाय चारित्र मोहनीय सोलह प्रकार के हैं और नोकषाय चारित्र मोहनीय नौ प्रकार के हैं । कषाय चार प्रकार के होते हैं (१) अनन्तानुबंधी कषाय (२) अप्रत्याख्यानी कषाय (३) प्रत्याख्यानी कषाय (४) संज्वलन कषाय ॥ १७॥৷ जाजीव वरिस - चउमास - पक्खगा निरयतिरिअ - नर- अमरा, सम्माणु- सव्वविरई, अह क्खायचरित्त घायकरा ॥ १८ ॥ I - इन चारों कषायों (अन्तानुबंधी आदि) का काल क्रमश: यावज्जीवन, एक वर्ष, चार मास और पन्द्रह दिवस है । क्रमशः नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति और देव गति देने वाला है तथा क्रमशः सम्यक्त्व, देशविरति, सर्वविरति और यथाख्यात चारित्र का घातक है ॥१८॥ कर्मग्रंथPage Navigation
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