Book Title: Karmgranth 01 02 03
Author(s): Devendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 19
________________ पराघात नामकर्म के उदय से निर्बल प्राणी को अन्य बलवान प्राणी भी मुश्किल से जीत पाते हैं । उच्छ्वास नाम कर्म के उदय से जीव उच्छ्वास लब्धि से संपन्न होता है ॥४४॥ रविबिंबे उ जीअंगं, तावजुअं आयवाउ न उ जलणे, । जमुसिणफासस्स तहिं, लोहिअवण्णस्स उदउत्ति ॥ ४५ ॥ सूर्य बिंब (विमान) में स्थित जीवों (पृथ्वीकायमय रतन) का शरीर तापयुक्त प्रकाश देता है, वह आतप नाम कर्म का उदय है। अग्निकायिक जीवों में इस कर्म का उदय नहीं होता है। उनमें उष्ण स्पर्श और रक्त वर्ण नामकर्म का उदय होता है ॥४५॥ अणुसिणपयासरूवं, जिअंगमुज्जोअए इहुज्जोआ, । जइ-देवुत्तरविक्किअ, जोइस-खज्जोअमाइव्व ॥ ४६ ॥ साधु का वैक्रिय शरीर, देवों का उत्तर वैक्रिय शरीर, चन्द्रादि ज्योतिष्क देव, खद्योत आदि की तरह जिन जीवों का शीत शरीर अनुष्ण प्रकाश करता है, उसमें कारणरूप उद्योत नाम कर्म का उदय है ॥४६॥ अंगं न गुरु न लहअं, जायइ जीवस्स अगुरुलहउदया, । तित्थेण तिहुअणस्सवि, पुज्जो से उदओ केवलिणो ॥४७॥ कर्मग्रंथ १८

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