Book Title: Karmgranth 01 02 03
Author(s): Devendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ गोत्र, पंचेन्द्रिय, शाता - अशाता में से एक वेदनीय इन तेरह प्रकृतियों का क्षय होता है ||३३|| अथवा मनुष्यानुपूर्वी बिना 12 कर्मप्रकृतियों का अयोगी गुणस्थानक के अंतिम समय में क्षय कर मोक्ष प्राप्त करनेवाले एवं देवेन्द्रों से वंदित महावीर प्रभु को नमस्कार है ॥३४॥ ३८ कर्मग्रंथ

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50