Book Title: Karmgranth 01 02 03
Author(s): Devendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
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भावार्थ : स्त्रीवेद का अंत होने से पाँचवें भाग में 112 प्रकृतियों की सत्ता रहती है ।
हास्यषट्क का अंत होने से छठे भाग में 106 प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं।
पुरुषवेद का क्षय होने से सातवें भाग में 105 प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं ।
__संज्वलन क्रोध का क्षय होने से आठवें भाग में 104 प्रकृति सत्ता में रहती है।
संज्वलन मान का क्षय होने से नौवें भाग में 103 प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं।
फिर संज्वलन माया का क्षय होता है ॥२९॥ सुहुमि दुसय लोहंतो, खीणदुचरिमेगसयं दुनिद्दखओ; । नवनवई चरिमसमए, चउदसण-नाणविग्घतो ॥ ३० ॥
__भावार्थ : सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानक में सत्ता में 102 प्रकृतियाँ होती हैं । वहाँ संज्वलन लोभ का अंत होने से क्षीणमोह गुणस्थानक के द्विचरम समय में 101 प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं।
वहाँ निद्रा द्विक का क्षय होने से क्षीणमोह के अंतिम समय में 99 प्रकृतियाँ सत्ता में रहती है ॥३०॥
कर्मग्रंथ