Book Title: Karmgranth 01 02 03
Author(s): Devendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 32
________________ देशविरति गुणस्थानक में 87 कर्मप्रकृतियाँ उदय में होती है। देशविरति के अंत में तिर्यंच गति, तिर्यंच आयुष्य, नीच गोत्र, उद्योत नाम कर्म तथा तीसरे प्रत्याख्यानीय कषाय के उदय का विच्छेद होता है ॥१६॥ अठ्ठच्छेओ इगसी, पमत्ति आहारजुअल-पक्खेवा; । थीणतिगाहारगदुअ - छेओ छस्सयरि अपमत्ते ॥ १७ ॥ भावार्थ : आठ कर्मप्रकृति का उदय विच्छेद होने से और आहारक द्विक को जोड़ने से प्रमत्त गुणस्थानक में 81 प्रकृतियों का उदय होता है । वहाँ थीणद्धि त्रिक और आहारक द्विक का उदय विच्छेद होने से अप्रमत्त गुणस्थानक में 76 कर्मप्रकृतियों का उदय होता है ॥१७॥ सम्मत्तंतिमसंघयण - तियच्छेओ बिसत्तरि अपुव्वे । हासाइछक्क-अंतो, छसट्ठि अनिअट्टि वेअतिगं ॥ १८ ॥ भावार्थ : अप्रमत्त गुणस्थानक में सम्यक्त्व मोहनीय और अंतिम तीन संघयण के उदय का विच्छेद होता है। अतः अपूर्वकरण गुणस्थानक में 72 कर्मप्रकृतियों का उदय होता है ॥१८॥ संजलणतिगं छ-छेओ, सढि सुहुमंमि तुरिअलोभंतो;। उवसंतगुणे गुणसट्टि-रिसहनारायदुगअंतो ॥ १९ ॥ कर्मस्तव - द्वितीय कर्मग्रंथ

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