Book Title: Karmgranth 01 02 03
Author(s): Devendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
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ऋषभ का अर्थ है पाटा । वज्र का अर्थ है । कीलिका । दोनों तरफ के मर्कट-बंध को नाराच कहते हैं ये छह संघयण औदारिक शरीर में ही होते हैं ॥ ३९ ॥ समचउरंसं निग्गोह - साइ खुज्जाइ वामणं हुंडं, । संठाणा वण्णा किण्ह, नील- लोहिअ - हलिद्द - सिआ ॥४०॥ संस्थान नाम कर्म छह प्रकार के कहे गए हैं
(१) समचतुरस्र ( २ ) न्यग्रोध परिमण्डल (३) सादि (४) वामन (५) कुब्ज (६) हुण्डक ॥४०॥
वर्ण नाम कर्म के पाँच प्रकार हैं- (१) काला (२) नीला (३) लाल (४) पीला और (५) श्वेत ॥४०॥ सुरहिदुरही रसा पण, तित्त - कडु - कसाय - अंबिला - महुरा, । फासा गुरुलहु-मिउखर - सीउण्ह - सिणिद्धरुक्खट्ठा ॥४१॥ गंध नाम कर्म दो प्रकार के हैं - (१) सुरभि ( २ ) दुरभि ।
रस नामकर्म पाँच प्रकार के हैं - (१) तिक्त (२) कटु (३) कषाय (४) खट्टा - खारा (५) मधुर ।
स्पर्श नामकर्म आठ प्रकार के हैं- (१) गुरु (२) लघु (३) मृदु (४) कर्कश (५) शीत (६) उष्ण (७) स्निग्ध (८)
रुक्ष ॥४१॥
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कर्मग्रंथ