Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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में उद्धार, अद्धा और क्षेत्र इन तीन प्रकार के पल्योपमों का स्वरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव – ये चार प्रकार के सूक्ष्म और बादर पुद्गल परावर्ती का स्वरूप एवं उपशमश्रेणि तथा क्षपकश्रेणि का स्वरूप आदि नवीन विषयों का समावेश किया है । इस प्रकार प्राचीन कर्मग्रन्थों की अपेक्षा श्री देवेन्द्रसूरि विरचित नवीन कर्मग्रन्थों की मुख्य विशेषता यह है कि इन कर्मग्रन्थों में प्राचीन कर्मग्रन्थों के प्रत्येक वर्ण्य विषय का समावेश होने पर भी परिमाण अत्यल्प है और उसके साथ अनेक नवीन विषयों का संग्रह किया गया है ।
नवीन कर्मग्रन्थों की टीकाएँ
श्रीमद् देवेन्द्रसूरि ने अपने नवीन कर्मग्रन्थों की स्वोपज्ञ टीकाएँ की थीं, किन्तु उनमें से तीसरे कर्मग्रन्थ की टीका नष्ट हो जाने से बाद में अन्य किसी विद्वान आचार्य ने अवचूरि नामक टीका की रचना की ।
श्रीमद् देवेन्द्रसूरि की टीका-शैली इतनी मनोरंजक है कि मूल गाथा के प्रत्येक पद या वाक्य का विवेचन किया गया है । इतना ही नहीं, बल्कि जिस पद का विस्तारपूर्वक अर्थ समझाने की आवश्यकता हुई, उसका उसी प्रमाण में निरूपण किया है । इसके अतिरिक्त एक विशेषता यह भी देखने में आती है कि व्याख्या को अधिक स्पष्ट करने के लिए आगम, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका और पूर्वाचार्यों के प्रकरण ग्रन्थों में से सम्बन्धित प्रमाणों तथा अन्यान्य दर्शनों के उद्धरणों को प्रस्तुत किया है । इस प्रकार नवीन कर्मग्रन्थों की टीकाएँ इतनी विशद, सप्रमाण और कर्मतत्त्व के ज्ञान से युक्त हैं कि इनको देखने के बाद प्राचीन कर्मग्रन्थों और उनकी टीकाओं आदि को देखने की जिज्ञासा प्रायः शान्त हो जाती है । टीकाओं की भाषा सरल, सुबोध और प्रांजल है ।
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