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आमुख
प्रश्नोत्तर शैली में 'करणानुयोग' के विषयों की संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक जानकारी देने वाली पुस्तिकाओं के क्रम में पं. पन्नालालजी साहित्याचार्य रचित यह तीसरी पुस्तक है। प्रथम दो पुस्तकों की भाँति इसका भी प्रकाशन करणानुयोग दीपक - तृतीय भाग के रूप में श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन ( धर्म संरक्षिणी ) महासभा द्वारा किया गया है ।
गोम्मटसार जीवकाण्ड का आधार लेकर करणानुयोग दीपक का प्रथम भाग लिखा गया था। दूसरा भाग गोम्मटसार कर्मकाण्ड पर आधारित था। दोनों में क्रमशः १६६ और ३०० प्रश्नोत्तर हैं। इस तीसरे भाग में लोक- रचना से सम्बन्धित २५८ प्रश्नोत्तर हैं, जो त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ती राजवार्तिक और स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा (लोकानुप्रेक्षा) के आधार पर लिखे गये हैं। इसमें कुल पाँच अधिकार हैं- प्रथम अधिकार में अधोलोक, द्वितीय अधिकार में भवनन्त्रिक, तृतीय अधिकार में वैमानिक देव, चतुर्थ अधिकार में तिर्यक्-लोक का वर्णन है और पाँचवें अधिकार में करण से सम्बन्धित विशिष्ट परिभाषाएँ दी गई हैं। सभी प्रश्नोत्तर सामान्य पाठक को सरल भाषा में विषय की पर्याप्त जानकारी कराने में पूर्णतया सक्षम हैं।