Book Title: Kalyankarak
Author(s): Ugradityacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govind Raoji Doshi Solapur

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Page 10
________________ (3) फिर भी प्रथम अध्याय के न्यायवैशेषिक तत्व का समावेश, ग्यारहवें अध्याय के तीन एषणाका कथन कर, उस की सिद्धि के लिए प्रमाणसिद्धि का भाग, आत्रेय भद्रकालीय अध्याय के क्षणभंगी न्याय, इन भागों को चरकाने प्रतिसंस्कार किया तब समावेश किया मालुम होता है । कारण कि वैदिक व औपनिषदिक काल में न्यायवैशेषिकों का उदय नहीं हुआ था, और बौद्धों का उदय तो प्रसिद्ध ही है । चरकसंहिता ग्रंथ विशेषतः कायचिकित्सा - विषयक है । उस के सर्व भागों में इसी विषय का प्रतिपादन है । चिकित्सा का तात्विक विषय व प्रत्यक्ष कर्म का ऊहापोह बहुत अच्छी तरह चरकने किया है । कल्याणकारक ग्रंथ का चिकित्साविषय मधु, मद्य, मांस के भागको छोडकर बहुत अंश में चरक से मिलता जुलता है । शल्यचिकित्सा आयुर्वेद के अंगोंमें एक मुख्य अंग है । शल्यचिकित्सा का प्रतिपादन व्यवस्थित व शास्त्रीयपद्धती से सुश्रुताचार्य ने किया है । इस से पहिले भी उपधेनु, उम्र, पुष्कलावत आदि सज्जनों के शल्यतंत्र ( Treatises on Surgery ) बहुतसे थे । परन्तु सब को व्यवस्थित संग्रह करने का श्रेय सुश्रुताचार्य को ही मिल सकता है । सुश्रुतने अपने ग्रंथ में शवच्छेदन से लेकर सर्व प्रत्यक्ष - शरीर का परिज्ञान करने के संबंध में काफी प्रकाश डाला है । शल्यतंत्रकारने अर्थात् वैद्य ने " पाटयित्वा मृतं सम्यक् " शरीरज्ञान प्राप्त करें, इस प्रकार का दण्डकसूत्र का सुश्रुतने अपनी संहिता में प्रतिपादन किया है । सुश्रुत के पहिले व तत्समय में अनेक तंत्र ग्रंथकार हुए हैं। जिन्होंने शरीरज्ञान के लिए विशेष प्रयत्न किया था । ऐसे ही ग्रंथकारों के प्रयत्न से शरीरज्ञान का निर्माण हुआ है । सौश्रुत-शारीर का अनुवाद आगे के अनेक ग्रंथकारों ने किया है । सुश्रुतशारीर कायचिकित्सक व शस्त्र चिकित्सक के लिए उपयोगी है । सुश्रुत इस शारीर के आधार पर शल्यतंत्र का निर्माण कर उसका विस्तार किया है । अनेक प्रकार के शस्त्र, यंत्र, अनुयंत्र, आदि का वर्णन सुश्रुत ग्रंथ में मिलता है । अष्टविध शस्त्रकर्म किस प्रकार करना चाहिए. व पश्चात् कर्म किस प्रकार करना चाहिए आदि बातों का ऊहापोह इस संहिता में किया गया है । शस्त्र क्रिया के पहिले की क्रिया व शस्त्रक्रिया के बाद की व्रणरोपणादि क्रियाओं का जिस उत्तम पद्धति से वर्णन किया गया है, उस में आधुनिक शस्त्रविद्या प्रवीण विद्वानों को भी बहुत कुछ सीखने लायक है । और शस्त्रकर्म प्रवीण पाश्चात्य वैद्योंने सुश्रुतकी पद्धतिको Indian Methods के नामसे लिया भी हैं । सुश्रुतसंहिता में छोटी छोटी शस्त्रक्रियाओं का ही वर्णन नहीं अपितु कोष्ठपाटनादि बडी बडी शस्त्रक्रियाओं का भी प्रतिपादन है । बद्धगुदोदर, अश्मरी, आंत्रवृद्धि, भगंदर आदि पर शस्त्रक्रियाओं का ठीक आधुनिक पद्धति से ही जो वर्णन 1 Jain Education International --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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