Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 20
________________ आर्थिक विकास और नैतिक मूल्य 11 की स्थिति है। यह सर्वथा अवांछनीय है। गरीबी की रेखा के नीचे जीवन जीने वाला अभाव का जीवन जीता है। अभाव का जीवन जीने वालों में भी गरीबी की मनोवृत्ति नहीं पाई जाती। उनमें उदारता, प्रामाणिकता या नैतिकता के आचरण का स्पष्ट दर्शन होता है। अमीरी की मनोवृत्ति में ये लक्षण नहीं पाये जाते या अल्पमात्रा में पाए जाते हैं। इस मनोवृत्ति के आधार पर गरीबी को वरदान और अमीरी को अभिशाप कहना असंगत नहीं होगा। इस सिद्धान्त की स्थापना में गरीबी को बनाए रखने का समर्थन नहीं है किन्तु गरीबी की सहजीवी मनोवृत्ति के अध्ययन की दिशा को उद्घाटित करने का प्रयत्न है। हमें इस दिशा में अनुसंधान करना चाहिए। एक सामान्य स्थिति में जीने वाला गरीब आदमी प्रामाणिकता या नैतिकता में निष्ठा रखने वाला कैसे होता है? अमीरी की अवस्था में जीने वाला व्यक्ति प्रामाणिकता या नैतिकता से विमुख क्यों होता है? तीसरा विकल्प ___ गरीबी में अभाव दुःख देता है इसलिए उसको बनाए रखने का विकल्प मान्य नहीं हो सकता। अमीरी में पदार्थ की आसक्ति या मूर्छा दुःख देती है, इसलिए अमीरी का विकल्प भी मान्य नहीं होना चाहिए। एक तीसरा विकल्प खोजना होगा। अनेकान्त में तीसरे विकल्प की अवधारणा मान्य है। नित्य एक विकल्प है। अनित्य दूसरा विकल्प है। तीसरा विकल्प है-नित्यानित्य। गरीबी एक विकल्प है। अमीरी दूसरा विकल्प है। तीसरा विकल्प है गरीबी+अमीरी। इस तीसरे विकल्प में जीवन-यापन के साधनों का अभाव नहीं होता और धन के प्रति आसक्ति या मूर्छा नहीं होती। साधन का भाव और आसक्ति का अभाव-ये दोनों मिलकर तीसरे विकल्प का निर्माण करते ___ अर्थ-व्यवस्था और समाज-व्यवस्था को समीचीन बनाने के लिए तीसरी जाति के व्यक्तियों का निर्माण करना आवश्यक है। इस कोटि के व्यक्ति ही नई समाज रचना अथवा अहिंसक समाज रचना की अवधारणा को साकार कर सकते हैं। नई समाज रचना के लिए अनेक प्रयत्न हुए हैं। उनमें समाज की व्यवस्था को बदलने का प्रयत्न मुख्य है, मनोवृत्ति को बदलने का प्रयत्न गाण है। इस प्रयत्न का निष्कर्ष यह है-मनोवृत्ति को बदले बिना केवल व्यवस्था को नहीं बदला जा सकता। केवल मनोवृत्ति को बदलना भी एकान्तवादी दृष्टिकोण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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