Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 85
________________ 76 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ? दिया तुमको सम्राट् ?” सम्राट ने सुना । वह अवाक् रह गया। मुँह तमतमा उठा । होठ फड़कने लगे। त्यौरियां चढ़ गयीं । आँखों से खून बरसने लगा । इतना गुस्सा उतरा कि वह पागल सा हो गया। उसने तलवार निकाल कर कहा - 'तुम मुझे क्या नरक दिखाओगे, मैं अभी तुम्हें नरक का मजा चखाता हूं। तुमको विवेक ही नहीं है कि तुम किसके सामने बोल रहे हो ? क्या कह रहे हो?" संन्यासी हंस पड़ा। वह बोला- 'सम्राट् नरक का साक्षात्कार हुआ या नहीं? सम्राट् ! देखो, जब-जब व्यक्ति आवेश में होता है, भान भूल जाता है, तब-तब वह नरक का साक्षात्कार करता है।' यह सुनते ही सम्राट् संभला । उसने सोचा - सचमुच, संन्यासी मुझे ठीक कह रहा है। मैंने गलत किया । पहले सोचना चाहिए था कि संन्यासी मुझे भला-बुरा क्यों कह रहा है? मैंने सोचा नहीं और क्रोध में आविष्ट हो गया । सम्राट् अनुताप करने लगा । उसने नम्रता के साथ संन्यासी के चरण छुए। वह बोला - 'महाराज ! क्षमा करें । मैं भान भूल गया था । मैंने अपराध किया है।' सम्राट् के चेहरे पर शान्ति छा गई। जब उत्तेजना की तेजी के बाद शान्ति आती है तब वह और अच्छी होती है। उसके चेहरे पर सौजन्य का भाव झलकने लगा । विनय और श्रद्धा प्रगट हुई। संन्यासी ने तत्काल कहा - 'सम्राट् ! तुम स्वर्ग का साक्षात्कार करना चाहते थे । तुम्हारी वर्तमान की भावधारा, स्थिति साक्षात् स्वर्ग है ।' सम्राट् समझ गया । जिसे स्वर्ग और नरक का साक्षात्कार करना है वह अपने व्यक्तित्व को देखे । उसमें दोनों प्राप्त हैं । अपेक्षा है गहराई में जाने की, डुबकियां लेने की । यह बात प्रयोग के बिना संभव नहीं है । जिस व्यक्ति ने प्रयोग नहीं किया, अपने भीतर झाँकने का प्रयत्न नहीं किया, केवल दो खिड़कियों (आँखों) को खुला रखा, भीतर देखने के लिए तीसरी खिड़की (तीसरे नेत्र) को खोला ही नहीं, वह इस सत्य को कभी नहीं पकड़ पाएगा। वह केवल शब्दों के जाल में उलझा उर्दू के प्रसिद्ध शायर मिर्जा साहब लखनऊ गए। सभा हो रही थी । कुछ लोग दिल्ली से आए। सभा में हंगामा हो गया। मिर्जा साहब ने कहा - सब शान्त रहें । सभा भंग क्यों करना चाहते हैं? परिषद् से आवाज आई- हमारा एक विवाद है । जब तक विवाद नहीं मिटेगा तब तक सभा नहीं होने देंगे। मिर्जा साहब ने पूछा- क्या है विवाद? वे बोले-हम निर्णय करना चाहते हैं कि रक्त शब्द पुल्लिंग है अथवा स्त्रीलिंग ? हम दिल्ली वाले रक्त को स्त्रीलिंग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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