Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 89
________________ 80 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? के अस्तित्व को अस्वीकार करता है, वह अपने अस्तित्व को अस्वीकार करता है। जो अपने अस्तित्व को अस्वीकार करता है, वह दूसरे जीव के अस्तित्व को अस्वीकार करता है से बेमि-णेव सयं लोगं अन्भाइखेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा। जे लोयं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खड़, से लोयं अब्भाइक्खइ। दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करने वाला ही प्रकृति के साथ जी सकता है। कुछ चिन्तकों का तर्क है-बुद्धिमान मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है। विकास के लिए वैसा करना जरूरी है। वह प्रकृति में होने वाली क्षति की पूर्ति करना भी जानता है, इसलिए विकास की प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता, उसकी कोई सीमा नहीं की जा सकती। यह चिन्तन अर्थहीन नहीं है। ऊर्जा का व्यय होता है तो उसके नए स्रोत खोजे जा सकते हैं। जंगलों की कटाई होती है तो नए जंगल तैयार किए जा सकते हैं। प्रदूषित पर्यावरण को विशुद्ध करने के तरीके खोजे जा सकते हैं। संवेग के असंतुलन और नैतिकता के मूल्यों के ह्रास की समस्या के समाधान का विकल्प क्या होगा? जैसे-जैसे विकास की गति तेज हो रही है वैसे-वैसे मनुष्य का संवेगात्मक असंतुलन बढ़ रहा है। आर्थिक अपराध से आज की चेतना जितनी ग्रस्त है, उतनी शायद पहले नहीं थी। आतंककारी मनोदशा में भी वृद्धि हुई है। क्या औद्योगिक और आर्थिक विकास इनको रोक पाएगा? इनके निरोध का उपाय खोजे बिना मनुष्य प्रकृति के साथ नहीं जी सकता, मानसिक शान्ति और विश्वशान्ति का स्वप्न भी नहीं ले सकता। नई दिशा विश्वविद्यालय की शिक्षा ने बौद्धिक विकास और वैज्ञानिक विकास के नए द्वार खोले हैं। हम इस युग के चिन्तन-मंथन और सुविधा की प्रचुर सामग्री से संतुष्ट हैं इसलिए निरन्तर इस दिशा में आगे बढ़ने की बात सोच रहे हैं। तनाव, भय, अपराध और मादक वस्तुओं के सेवन की प्रवृत्ति संकेत दे रही है कि मनुष्य के भीतर असंतोष है और वह असंतोष मनुष्य को प्रकृति के साथ अन्याय करने के लिए विवश कर रहा है। संतोष और असंतोष-दोनों की समीक्षा करने पर एक नई दिशा की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट होता है। वह दिशा है भावात्मक अनुभूति (इमोशनल इंटेलीजेंसी) की। क्या इस दिशा में कुछ सोचना आवश्यक नहीं है? प्रकृति के साथ जीने के लिए पूरी जीवनशैली का विश्लेषण आवश्यक है। केवल भौतिक दृष्टिकोण से निर्मित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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