Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 118
________________ अहिंसा 109 और उसके आधार पर होने वाला आचरण । इन गलत मान्यताओं ने प्रकृति के साम्राज्य में अनावश्यक हस्तक्षेप की प्रवृत्ति को जन्म दिया है। यह हस्तक्षेप मनुष्य के कर्तृत्व को दैवी या ईश्वरीय रूप दे सकता है, करने, न करने और अन्यथा करने में उसे सक्षम बना सकता है किन्तु गलत मान्यता और गलत आचरण के कारण मनुष्य में जो क्रूरता उत्पन्न होती है, उसका समाधान कहां से मिले? क्रूरता आज के युग की सबसे बड़ी समस्या है। वह करुणा को निरन्तर लीलती जा रही है। क्या करुणा के बिना मनुष्य मनुष्य रह पाएगा? मानसिक शान्ति का दृष्टिकोण आदमी सुख चाहता है, दुःख नहीं चाहता। वह सुख को पाने और दुःख को मिटाने के लिए रास्ते खोजता है। सबसे बड़ा रास्ता है भोग की सामग्री, इन्द्रियों को तृप्ति देने वाले पदार्थ। कभी पदार्थ का निर्माण अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हुआ था।धीरे-धीरे दृष्टिकोण बदलता गया। अब पदार्थ के निर्माण का आधार इच्छापूर्ति और अधिकतम सुविधा है। सीमित इच्छा, सीमित आवश्यकता और सीमित पदार्थ-यह मानसिक शान्ति का दृष्टिकोण है। किन्तु आज के अर्थशास्त्री और अर्थशास्त्रीय कोण से प्रभावित जनमानस को यह मान्य नहीं है। ___ असीम इच्छा, असीम आवश्यकता और असीम पदार्थ-इस चिन्तन के रंग में रंगा हुआ है वर्तमान का मानस । इसी मानस ने जन्म दिया है पदार्थ प्रधान संस्कृति को और थ्रो अवे की जीवन-शैली को। बनाओ, भोगो और फेंको। जीवन का प्रवाह इस दिशा में मुड़ रहा है। इस धारा से उपज रहा है-मानसिक असंतुलन, अतृप्ति और मानसिक तनाव । इससे हो रहा है पर्यावरण का असंतुलन। प्लास्टिक एक उदाहरण बन सकता है। अभी होड़ है प्लास्टिक के निर्माण की। चारों ओर उससे निर्मित पदार्थ देखे जा सकते हैं। उन्हें बनाना कठिन नहीं है। समस्या है उन्हें फेंकना। वे मिट्टी की भांति मिट्टी में नहीं मिल पाते। वे अपने रूप में बने रहते हैं। यदि उन्हें जलाया जाए तो जहरीली गैस पैदा होती है, इससे पर्यावरण दूषित हो जाता है। एक दिन उन्हें फेंकने के लिए धरती पर स्थान नहीं होगा और समुद्र भी उन्हें पचा नहीं पाएगा। यह समस्या केवल प्लास्टिक से ही पैदा नहीं हो रही है, अनेक पदार्थों के निर्माण से पैदा हो रही है। सुविधावादी और व्यावसायिक दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ आदमी इसे आंखों से ओझल कर रहा है। यह एक गंभीर संकट है इस पृथ्वी के लिए और मानव जाति के लिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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